असदुद्दीन ओवैसी जिनकी राजनीति सबसे अलग है...



महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और हरियाणा विधानसभा चुनावों के साथ बिहार की कई सीटों पर उपचुनाव भी हुए है,इन चुनावों ने एक राजनैतिक दल ने सबसे ज़्यादा चौंकाने वाले परिणाम दिया है,वो है असद्द्दीन ओवैसी की पार्टी मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन जिसने महाराष्ट्र विधानसभा में पिछले विधानसभा की तरह  2 सीट हासिल की है और कई सीटों पर दूसरे नंबर रही है और तो और इस दल ने बिहार की किशनगंज विधानसभा उपचुनाव सीट पर भी जीत हासिल कर वहां भी अपना खाता खोला है | असद्दुदीन ओवैसी अब आगे झारखंड विधानसभा चुनाव भी लड़ने की कोशिशों में है तो यहां यह सवाल उनसे पूछना बनता ही है की पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ?  

असद्दुदीन ओवैसी,इस राजनेता का नाम तो एक है लेकिन काम कई है,यह टीवी स्टूडियो  से लेकर जनसभाओं तक हमेशा अपने विरोधी राजनैतिक दलों पर आक्रामक रहते है और बात को तथ्यों के आधार पर रखते है और अपने बोलने की खूबी से जनता को अपनी तरफ खींचने की कुव्वत भी रखते है आज की राजनैतिक स्थिति में असद्दुदीन ओवैसी से यह सवाल करना लाज़मी ही हो जाता है की यह चाहते क्या है ?  इनकी पॉलिटिक्स क्या है ? आइये कुछ इस पर नज़र डालने की कोशिश करते है |

( ओवैसी की पॉलिटिक्स)

हैदराबाद लोकसभा सीट से लगातार चौथी बार सांसद चुने गए ओवैसी साहब अपनी पोलिटिकल पार्टी मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष है,और तेलंगाना में इनकी पार्टी के सात विधायक है और सरकार में इनकी भागीदारी भी है,लेकिन हैदराबाद के इन सांसद का प्लान कुछ और है इस वक़्त यह अपनी राजनैतिक पार्टी को मज़बूत करने की कोशिशों में है ,सबसे पहले इन्होने 2014 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा जहाँ से इन्हे 2 सीटों पर कामयाबी मिली हालांकि उत्तर प्रदेश में कई सीटों पर में भी ओवैसी की पार्टी चुनाव लड़ी लेकिन कामयाबी उन्हें नहीं मिल पायी |

लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में जहाँ एक तरफ नरेंद्र मोदी की लहर ने सभी को धाराशायी करके रख दिया था वही दूसरी तरफ एमआईएम के दो सदस्य चुन कर लोकसभा पहुंचे ,जिनमे हैदराबाद की सीट के अलावा महाराष्ट्र की औरंगाबाद की सीट भी एमआइएम के खाते में गयी थी और अब हुए विधानसभा चुनावों में महाराष्ट्र विधानसभा में उन्हें तकरीबन 1.44 फीसदी वोट मिला है और दो सीटें मिली है और वही बिहार के किशनगंज विधानसभा उपचुनाव में जीत हासिल कर असदुद्दीन ओवैसी ने तीन राज्यों की पार्टी  का कद हासिल कर लिया है, और किसी क्षेत्रीय राजनैतिक दल के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है | 

असल में ओवैसी की पॉलिटिक्स और मुस्लिम नेताओं से थोड़ी अलग है ,जहाँ एक तरफ तमाम सेक्युलर दलों के नेता इफ्तार पार्टी,मुशायरा,हज कमिटी से लेकर न जाने किन किन मुद्दों पर सियासत करते नज़र आते है वही सांसद महोदय अपनी सियासत अलग अंदाज़ से पेश करते है,यह मुस्लिम आरक्षण की बात करते है,सच्चर कमिटी की सिफारिशों  को लागू करने की बात करते है ,जहाँ एक तरफ ट्रिपल तलाक़ बिल पर तमाम मुस्लिम सांसद लोकसभा और राज्यसभा में चुप नज़र आते है वही असद्दुदीन अकेले ही इस मुद्दे पर संसद में आवाज़ बुलंद करते है,और लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाने की क़वायद करते है | 

यही वो मुद्दे है जिनसे असद्दुदीन सियासत में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब होते नज़र आते है,वही जब चुनावी रणनीति और और विचारधारा की आती है तो बहुत समझदारी से डॉ भीम राव आंबेडकर को देश का सबसे बड़ा लीडर कहते हुए भी ओवैसी ज़रा से झिझकते नहीं है,मान्यवर कांशीराम की सियासी समझ का उदाहरण देने झिझकते नहीं है जो इस तरह है "पहला चुनाव हारने,दुसरा हराने और तीसरा जीतने के लिए" और महाराष्ट्र में अंबेडकर साहब के पोते की पार्टी तक के साथ चुनाव लड़ने की पहल करते है असल में ओवैसी जिस सियासत को उभारना चाहते है वो दलितों और मुस्लिमों को साथ लाकर एक नया राजनैतिक गठजोड़ बनाने की है उसे वो अपने बातों में भी  बताने तक से झिझकते नही है वो 'मुसलमान हिंदुस्तान में है तो कांग्रेस की मेहरबानी या रहम-ओ-करम पर नहीं. हम यहां हैं तो बाबा साहेब के संविधान की वजह से और अल्लाह की मेहरबानी से...'' | 

(ओवैसी के साथ समस्याएँ )

असद्दुदीन के सियासी तालमेल जो सबसे बड़ा मसला है वो है उन पर मुस्लिम राजनैतिक दल होने का ठप्पा क्यूंकि होता हमेशा से यह आया है की भारत के मुस्लिमों का रुझान हमेशा से उन नेताओं पर रहा है जो राजनैतिक तौर पर सेक्युलर राजनीति करें और सबको साथ लेकर चलें,फिर चाहें इनमे कांग्रेस,सपा,बसपा राजद से लेकर जदयू या और कोई भी राजनैतिक विचारधारा रही हो लेकिन इस बीच में कोई भी दल ऐसा बिल्कुल नही रहा है जिस्सके राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर सबसे बड़े ओहदे पर मुस्लिम नेता रहे हो या मुस्लिम नाम वाली पार्टियाँ रही हो मुस्लिमों ने लगभग हर एक ऐसे दल को हराने का काम किया है | 

लेकिन ओवैसी अपने विरोधी नेताओं को जवाब देने में पीछे नही हट रहें है और बिलकुल इसके उलट अपनी एक अलग ही राजनैतिक विचारधारा को मजबूत कर रहे है,वो खुद तो संवैधानिक धारणाओं को आगे रखते है जहाँ वो संविधान के हिसाब से अपनी राजनैतिक विचारधारा मज़बूत करते है,वो हैदराबाद में मुस्लिम मेयरों को अपने प्रत्याशी चुनने की जगह के प्रकाश राव और ए सत्यनारायण को 2016 में मेयर चुनते है और ये सब एक ही जगह नहीं होता है जब बात महाराष्ट्र विधानसभा में भी उम्मीदवारों की आती है तो वहां भी पूरी तरह सियासी फैसलें लेते है और एससी सीट हो या जनरल वहां वो अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को भी भरपूर मौका देते है | 

( आगे और क्या मौके है )

असद्दुदीन फिलहाल जिस कवायद में है वो है अपने राजनैतिक दल को राष्ट्रीय दल का दर्जा दिलाना ,इसके लिए ही वो अलग अलग राज्यों में चुनाव लड़ रहे है,क्यूंकि सबसे पहले ज़रूरी यह है की चार राज्यों में कम से कम रीजनल यानि क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा होना चाहिए या तीन राज्यों की विधानसभा में 2 प्रतिशत सीटें किसी दल के पास होनी चाहिए,अब अगर मौजूदा स्थिति पर ध्यान दें तो ओवैसी तीन राज्यों में अपने विधायक बनवा चुके है,और आने वाले झारखंड,बंगाल और बिहार के अलावा दिल्ली में भी बहुत मुमकीन है की वो विधानसभा चुनावों की तैयारियों में है और इसमें भी कोई दो राय नहीं है की वो उत्तर विधानसभा चुनाव भी लड़ेंगे | 

अब मजलिस को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलता है या नहीं यह बाद की बात है लेकिन जहाँ एक तरफ हिंदुत्व की राजनीति अपने उरूज पर है वहां ओवैसी की नीतियां और राजनैतिक अहमियत भी बढ़ा है युवा उनके बारे में काफी हद तक सकारात्मक है सोशल मीडिया पर राजनैतिक विशेषज्ञ तारिक़ चम्पारणी लिखते है की "आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार धुलिया शहर विधानसभा से मुस्लिम विधायक चुनकर विधानसभा पहुँचे है। मजलिस ने स्वयं को साबित किया है"  वही ज़मीनी तौर पर उनका एक अलग प्रशंसक वर्ग है, और वो इन्हे अपने लीडर के तौर पर देखता भी है,हालंकि ओवैसी की आलोचना भी बहुत होती है लेकिन यह आलोचना ओवैसी को मज़बूत भी कर रही है,और मौजूदा स्थिति उनकी सियासत के लिए और उनके भविष्य के लिए बहुत ज़्यादा मुफीद नज़र आती है,क्यूंकि यह भी बहुत हद तक सच है की जहाँ एक तरफ क्षेत्रीय दल कमज़ोर हुए वही दूसरी तरफ असद्दुदीन की पार्टी कछुए की तरह ही सही लेकिन आगे ज़रूर बढ़ रही है और यह और दलों के लिए भी चिंता का भी विषय है और असद्दुदीन ओवैसी के लिए खुशी की बात है बाकी देखते है | 

असद शैख़...

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