इस्लाम के कानून और इस्लाम के नाम पर कानून
अशराफ,अज़लाफ और पसमांदा और गैर पसमांदा ये कुछ ऐसे वाक्य है जो भारतीय मुसलमानो के बीच कुछ इस तरह घर कर गए है मानो ये इस्लाम धर्म का ही हिस्सा हो और हद तो तब हो गयी जब मुस्लिम समाज के कुछ कथाकथित ठेकेदारो ने इसमें ये चीज़ और जोड़ दी की मुसलमानो में सिर्फ अपनी अपनी ज़ात में ही शादी हो सकती है और ये दोनों ऐसे वाक्य है लेकिन सवाल ये है की ऐसा इस्लामई व्यवस्था में है भी या नही? क्या मुसलमानो में भी दूसरी ज़ात में शादी करना मना या गुनाह है और अशराफ और अज़लाफ जेसे शब्द कितने सही है आइये इन बातों पर गौर करते है।। इस्लाम धर्म के अनुसार आखरी पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब के ज़रिये ईश्वर ने अपने सारे कानूनों को पूरा कर दिया यानि तमाम इंसान ऐसे बराबर है जेसे कनकी के एक एक दाने,गरीब और अमीर ,मालिक ग़ुलाम यहा तक की अरब की उस व्यवस्था में जहा लड़कियो को ज़िंदा दफ़न कर दिया जाता था वहा मर्द और औरत को बराबरी का दर्जा दिया गया और प्रत्येक तरह के भेदभाव को पूरी तरह खत्म कर दिया गया और जानवरो तक के लिए ऐसे उसूल बना दिए गए जिसमे आप जानवरो पर ज़्यादा बोझ नही डाल सकते है ये इस्लाम के बुनियादी कानून है यानि वो शख्स मुसलमान