"ग़ालिब" का है अंदाज़े बयाँ और...
पुरानी दिल्ली गली कासिम जान की तंग गलियों से निकलता रास्ता और उसमें लंबी टोपी सर पर लगा कर कमर को झुकाएं चलने वाले मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान जिनका तखल्लुस "ग़ालिब" था,और सारी दुनिया इन्हें "मिर्ज़ा ग़ालिब" के नाम से जानती है इनकी पैदाइश आज ही के दिन हुई थी। "वो पूछते है हमसे की ग़ालिब कौन है अब तुम ही बतलाओ की बताएं क्या" मिर्ज़ा ग़ालिब की शख्सियत और उनकी पहचान को अगर उन्ही के शेर से बताया जाए तो यही शेर उनकी शख्सियत पर और उनके रुबाब भरे लहजे पर बिल्कुल सटीक बैठता है,मिर्ज़ा ग़ालिब की पैदाइश आज ही के दिन हुई,वो 1797 को उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे जहां से वो दिल्ली आ गए। मिर्ज़ा ग़ालिब की शख्सियत उनकी शायरी ही से बयान होती है जिसमे दर्द है,रुमानियत है मोहब्बत है और बयान है हर एक चीज़ का जो उन्होंने महसूस की और हासिल की,फिर चाहे उनकी औलादो के इन्तेक़ाल की खबर हो या अपने हाल पर हो मिर्ज़ा ग़ालिब ने हर एक मौके पर शायरी की है। "बाज़ीचा ए अतफाल है दुनिए मेरे आगे होता है शबो रोज़ तमाशा मेरे आगे" बाज़ीचा ए अतफाल यानी बच्चों के खेलने का मैदान