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भीड़ का न कोई जवाब न सवाल...

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भीड़ कही भी कभी भी लोगों का जमा होना, भीड़ क्या है कब है,क्यों है ये अलग अलग मायने रखती है लेकिन ये भीड़ अब की नही है पुरानी भी है,ये भीड़ हमेशा से ही बुरे और अच्छे  के साथ भी कंधे से कंधे को मिला चल चुकी है, लेकिन ये "भीड़" कभी भी कही भी आसानी से नज़र आती है , लेकिन आज की ये भीड़ जानलेवा हो गयी ये भीड़ खून की प्यासी हो गयी है. में इस भीड़ का "धर्म" नही ढूंढ रहा हूँ आप भी मत ढूँढिये, आप बस अंदर झाँक कर पूछिये की आप इसके साथ है या खिलाफ? हमेशा से एक बात तय होती है कि इस भीड़ की कोई शक़्ल नही होती,इस भीड़ का कोई आकार नही होता तभी ये भीड़ '47' से हाशिमपुरा,भागलपुर और फिर गुजरात न पहुँचती, और अगर ये सब होता तो "मुज़फ्फरनगर" पहुचने की सोचती नही लेकिन अफ़सोस ऐसा ही हुआ. लेकिन इन सब के बावजूद एक सहानुभूति होती थी हर "दंगे" के बाद एक अमन का रास्ता होता था ,हर बार इस भीड़ के तांडव बाद जब जब ये भीड़ मुज़फ्फरनगर में खून सड़कों पर फैलाती थी,जब जब ये भीड़ दिल्ली की सड़कों पर 84 में लाशें बिछाती थी, तब तब इस भीड़ के ख़िलाफ़ भारत खड़ा होता था और भीड़ को मात दी जाती थी,लेकिन क्