भीड़ का न कोई जवाब न सवाल...

भीड़ कही भी कभी भी लोगों का जमा होना, भीड़ क्या है कब है,क्यों है ये अलग अलग मायने रखती है लेकिन ये भीड़ अब की नही है पुरानी भी है,ये भीड़ हमेशा से ही बुरे और अच्छे  के साथ भी कंधे से कंधे को मिला चल चुकी है, लेकिन ये "भीड़" कभी भी कही भी आसानी से नज़र आती है , लेकिन आज की ये भीड़ जानलेवा हो गयी ये भीड़ खून की प्यासी हो गयी है.

में इस भीड़ का "धर्म" नही ढूंढ रहा हूँ आप भी मत ढूँढिये, आप बस अंदर झाँक कर पूछिये की आप इसके साथ है या खिलाफ? हमेशा से एक बात तय होती है कि इस भीड़ की कोई शक़्ल नही होती,इस भीड़ का कोई आकार नही होता तभी ये भीड़ '47' से हाशिमपुरा,भागलपुर और फिर गुजरात न पहुँचती, और अगर ये सब होता तो "मुज़फ्फरनगर" पहुचने की सोचती नही लेकिन अफ़सोस ऐसा ही हुआ.

लेकिन इन सब के बावजूद एक सहानुभूति होती थी हर "दंगे" के बाद एक अमन का रास्ता होता था ,हर बार इस भीड़ के तांडव बाद जब जब ये भीड़ मुज़फ्फरनगर में खून सड़कों पर फैलाती थी,जब जब ये भीड़ दिल्ली की सड़कों पर 84 में लाशें बिछाती थी, तब तब इस भीड़ के ख़िलाफ़ भारत खड़ा होता था और भीड़ को मात दी जाती थी,लेकिन क्या अब भी ऐसा हो रहा है? क्या हम इस भीड़ के ख़िलाफ़ है?

अब इस भीड़ ने नया रूप लिया है,जी हां डिजिटल रूप ये भीड़ सोशल हो गयी है,ये भीड़ अब "फेसबुक" पर भी आ गयी है, आप जहा तहा ,कभी भी कुछ तथ्यता या बशऊर चीज़ लिखते है ,बोलते है या फिर शेयर करते है तो भीड़ वहां तांडव करती है,गली गलोच करती है नफ़रत फैलाती है ,अब इस भीड़ का तांडव वहां भी हो गया है.

इस समाज को न तो कभी कोई समस्या का हल मिला है कम से कम जिसे तरह मिलना चाहिए लेकिन हाँ जिस तरह हर बार ये "भारत" यहां की संस्कृति,यहां की मोहब्बत यहां की हक़ीक़त हमेशा इसके ख़िलाफ़ खड़ी रही है क्या अब भी खड़ी रहेगी क्या इस संस्कृति को हम इस भीड़ से बचा पाएंगे? क्योंकि अगर आप इस हिंसक भीड़ के ख़िलाफ़ नही है तो इसके साथ है ,पूरी तरह साथ है

यक़ीन मानिये ये आप सबकों भी अभी नही तो बहुत जल्द "धराशायी" कर देगी,आप इसका शिकार हो जायँगे और जिस तरह इस भीड़ की शक़्ल पहले नही है अब भी नही होगी,और आप शायद तब ये कहने को हो न,क्या आप इस "भीड़" के ख़िलाफ़ है? या होंगे? या साथ है कई सवाल है आपके लिए छूट गए है ढूंढ लीजिये...



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