शिष्टाचार का बंटाधार और भयंकर परिणाम
तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे को मारने की" इस वाकय के अंदर की भद्दी गालिया लिखने की मेरी हिम्मत नही हुई जो अब सोचिये जो वाक्य बोलने में एक बड़े बाप ने अपने बच्चे से उसके अध्यापक द्वारा अपने बच्चे को एक थप्पड़ मारे जाने पर कहे थे। दरअसल यहाँ उस छात्र की बात हो रही है जो अपने अध्यापक द्वारा एक थप्पड़ मारे जाने पर दोगुने थप्पड़ अपने अध्यापक को मार गया जी हा हैरत में मत पड़िये अपने अध्यापक से न डरना , उसे पलटकर जवाब देना या थप्पड़ भी मार देना एक ज़माने में बाप की जगह रहे अध्यापक के लिए आज के कथित मॉडर्न छात्रो एँव इसे बहादुरी का नाम देने वाले माँ बाप के लिए ये कोई बड़ी बात नही है लेकिन आखिर क्यों हम ऐसी चीज़ों को आखिर क्यों नज़रअंदाज़ कर देते है या वो माँ बाप कैसे नज़रअंदाज़ मगर क्या वो माँ -बाप जानते है की उस जाहिलाना चीज़ जिसे बहादुरी समझ रहे है उसका शिकार वो खुद भी हो सकते है या उससे भी ऊपर वही छात्र दादरी में अख़लाक़ और विकासपुरी में डॉ नारंग को मौत के घाट भी उतार सकते है?? अपने बचपन में कक्षा 1 में मेने एक पाठ पढ़ा उसमें लिखा था अपने बड़ो का आदर करो सुबह उठकर उनके पेर छुओ लेकिन आखिर क्या ये च