तोप का मज़ाक।।।
मीडिया यानि अंधे समाज की लाठी सिर्फ यही एक बेहतर नाम है जो हमारे अनपढ़ समाज के लिए कहा जा सकता है मीडिया का रुतबा भारत के समाज में बहुत बड़ा है इस मीडिया को हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया वो अलग बात है की कई आलोचनाकार और लेखक इस बात को कहना नही चाहते है शायद इस की वजह पत्रकारिता के नाम पर हो रहा धंधा है जी हा ये " धंधा" शब्द इसलिए प्रयोग कर रहा हु क्योंकि पेड मीडिया और रिश्वत लेते गिरफ्तार होते पत्रकार इस बात को सही सिद्ध भी करते है फिर भी पत्रकारिता है तो हमारा चौथा स्तम्भ जो हमारे लोकतन्त्र के लिए स्तम्भ तो है मगर ये स्तम्भ अब दीमग लगा नज़र आ रहा है आखिर क्यों? आखिर क्यों इतना सबकुछ होने के बाद भी पत्रकारिता के सस्थानो में अब भी वही भारतेंदु के सिद्धान्त पढ़ाये जा रहे है? क्यों अरबो करोडो के "दान" नामक पैसे चल रहे प्राइवेट चैनल क्यों बायस्ड हो रहे है ये कई ऐसे सवाल है जो हमारी छाती पर दौड़ तो रहे है बस महत्वपूर्ण ये है की कुछ इसे महसूस करते है और कुछ इसे नज़रअंदाज़ कर देते है आइये इसका फ़र्क़ जानते है . मीडिया कब शुरू हुआ कब पत्रकरिता शरू हुई कोनसा पहला चैनल था वग