"ये केसा सेकुलरिज्म है साहब"
राष्ट्रपति चुनाव में "सेकुलर" मसीहाओं से लेकर भाजपा के बड़े विरोधी भाजपा के उम्मीदवार कोविन्द जी को वोट देते हुए नजर आये तो सवाल यूँ ही ये उठा गया क्या कोई "विचारधारा" अहम है ही नही? राजनीति के ऐतबार से कुछ चीज़ें ऐसी है जिन पर गौर करना चाहिए और इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है "विचारधारा",यानी दक्षिणपंथी,वामपंथी,सामप्रदायिक और सेकुलर वगेराह वगेराह,लेकिन राजनीति का एक उसूल है की कामयाब वही होता है जो अपनी विचारधारा पर टिका रहता है| इसमें सबसे उपर और इमानदारी से अव्वल पर आती है,"भाजपा" जो चाहें दो सांसदों के साथ रही हो या दो सो के साथ या सत्ता में रही हो या विपक्ष में उका एजेंडा तय है "हिंदुत्व" जिस पर वो टिकी है,लेकिन एक और सवाल ये है की भाजपा के विरुद्ध खड़े तमाम और दलों की विचारधारा क्या है? सबसे पहले कांग्रेस है बड़ी पार्टी है और पुरानी पार्टी है और भाजपा की धुर विरोधी है लेकिन उसकी विचारधारा ऐसी है की उसके नेता 'राम मंदिर' का ताला खुलवाने का आदेश देते है,कहते है की हम "राम राज" लायेंगे और उसी के राज में '