"ये केसा सेकुलरिज्म है साहब"

राष्ट्रपति चुनाव में "सेकुलर" मसीहाओं से लेकर भाजपा के बड़े विरोधी भाजपा के उम्मीदवार कोविन्द जी को वोट देते हुए नजर आये तो सवाल यूँ ही ये उठा गया क्या कोई "विचारधारा" अहम है ही नही? राजनीति के ऐतबार से कुछ चीज़ें ऐसी है जिन पर गौर करना चाहिए और इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है "विचारधारा",यानी दक्षिणपंथी,वामपंथी,सामप्रदायिक और सेकुलर वगेराह वगेराह,लेकिन राजनीति का एक उसूल है की कामयाब वही होता है जो अपनी विचारधारा पर टिका रहता है|

 इसमें सबसे उपर और इमानदारी से अव्वल पर आती है,"भाजपा" जो चाहें दो सांसदों के साथ रही हो या दो सो के साथ या सत्ता में रही हो या विपक्ष में उका एजेंडा तय है "हिंदुत्व" जिस पर वो टिकी है,लेकिन एक और सवाल ये है की भाजपा के विरुद्ध खड़े तमाम और दलों की विचारधारा क्या है?

सबसे पहले कांग्रेस है बड़ी पार्टी है और पुरानी पार्टी है और भाजपा की धुर विरोधी है लेकिन उसकी विचारधारा ऐसी है की उसके नेता 'राम मंदिर' का ताला खुलवाने का आदेश देते है,कहते है की हम "राम राज" लायेंगे और उसी के राज में 'भागलपुर से लेकर मलियाना और हाशिमपुरा" हो जाता है मगर फिर भी वो रह सेकुलर जाती है केसे? 

पता नही लेकिन वो सेकुलर है ,वही दूसरी तरफ है सपा ये वो दल जिसकी नींव बाबरी मस्जिद के ढेर पर रखी गयी थी,किसी ने भूले भटके ही सही और न जाने क्यों इस दल के अध्यक्ष "नेता जी" को "मोलाना" मुलायम तक कह दिया था,मगर ये और इनका दल और यहाँ तक की तमाम विधायक और सांसद भाजपा के राष्ट्रपति उम्मीदवार को वोट करने का हुक्म स्वीकार करते है,और फिर भी ये तमाम "सेकुलर मसीहा" है,और चुनाव आते ही मुस्लिम हितेषी होने की बीन बजाना ये दोबारा शुरू कर देंगे |

(तस्वीर ग्रेटर कश्मीर वेबसाइट से ली गयी है )
अच्छा बात यही खत्म नही होती है,2015 में "एमवाई" पैटर्न और "कुर्मी मुस्लिम भाई भाई " नारे के साथ सत्ता में आये नीतीश जी भी भाजपा के उम्मीदवार को समर्थन करने से नही माने और तो और ये तो इस बात के बारे में भी नही सोच पायें की रामनाथ कोविंद के खिलाफ जो उम्मीदवार है वो बिहार ही से ताल्लुक रखती है,और लोकसभा अध्यक्ष तक रही है लेकिन फिर भी समर्थन भाजपा के उम्मीदवार को दिया ही को दिया,लेकिन जवाब कुछ नही,आखिर ऐसी कोंनसी मज़बूरी है,समस्या है?

 ये ज़ाहिर है की नही है तो ये बात भी बिलकुल तय है की अगर ऐसा है तो समर्थन सेकुलरपसंद,अमनपसंद और अल्पसंख्यकों के साथ खुला धोखा है,खुला झूट है,और इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी ये रह जाते है सेक्युलर तो फिर कम्युनल हुआ कोन वो जिसे ये कथित मसीहा बताएं और जब चाहें बदल लें? ये तो खेल है साहेब जिसे ये सब सगल रहें है और हैरत ये है की हर एक जगह इस मसलें पर चुप्पी है और बड़ी चुप्पी है| 

मगर फिर सवाल ये उठता है की ये केसा सेकुलरिज्म है जो गुबरें की तरह है जब चाहा फुला लिया उर जब चाहा हवा निकाल दी?इस बात को गौर करते हुए तमाम अमनपसंद और सेकुलर से लेकर अल्पसंख्यक समाज को,या इनका प्रतिनिधित्व करने वाले तमाम संगठनों को इस बात पर सवाल ज़रूर करना चहिये, की क्यों ये सभी कथित सेकुलर दल क्यूँ आपने आप को सेकुलर कहते है?

क्यूंकि ये "धोखा" किया जा रहा है और अगर  फिर भी ये सेकुलर है तो इनसे बेहतर तो भाजपा है क्यूंकि जो वो है सामने है,लेकिन इनका क्या भरोसा? कब क्या करें?लेकिन एक मौका आपके पास बाकी है और वो ये ये सेकुलर नेताओं से सवाल करना अभी बाकी है की और सवाल ये की  "ये केसा सेकुलरिज्म है साहब"?ज़रूर पूछियेगा,क्यूंकि सवाल करना लोकतंत्र की पहचान है |  

असद शैख़



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