"विपक्ष" कहाँ है ?

देश की राजनीति अब नये मूड में है,यानि कमजोर विपक्ष के सामने पूर्ण बहुमत की सरकार,लेकिन गौर करने की बाद ये है की "विपक्ष" किस स्थिति में है? किस जगह खड़ा है ? और केसे आगे बढ़ेगा? ये सवाल राजनीतिक गलियारों में अचानक से कूद गया है,क्यूंकि अब स्थिति आ गयी है एक नये एक्शन की,यानी "भाजपा" के बढ़ते जनाधार के खिलाफ किसे और केसे कोंन खड़ा हो सकता है? क्यूंकि ये बात तो सिद्ध हो गयी है की अब भाजपा के "मोदी" के सामने कोई चेहरा है नही,तो 2019 में क्या होगा ?

कांग्रेस-अगर सबसे पहले बात कांग्रेस की करें तो वो इस वक़्त ज़मीन पर है,उसके पास कोई नेता नही है,और उसके "युवराज" कमज़ोर होते हुए नजर आ रहें है और जेस जेसे राहुल बढ़ रहें है कांग्रेस मजबूत की जगह और बहुत और कमज़ोर हो रही है,उसके पास न तो नेतृत्व है और न ही कोई नेता इसलिए कांग्रेस सिर्फ राष्ट्रीय दल जेसा दिख सकती है |

सपा- पांच साल सत्ता में शीर्ष पर रही समाजवादी पार्टी इस वक़्त अच्छी स्थिति में नही है दो धड़ों में बंटने को तैयार है,हाल तो ये है की सेकुलर होने का नाम डदम भरने वाली सपा इस बार भाजपा के प्रत्याशी को समर्थन दे चुकी है,लेकिन कांग्रेस से बेहतर उसके पास एक चीज़ है और वो ये है की उसके पास नेता है अखिलेश यादव जो उसके लिए सबसे बड़ा हथियार है,आज भी अखिलेश यादव मोदी जेसा चेहरा नही बन पाए है और वो भी कमज़ोर है |

बसपा-बामसेफ जेसे संगठनों के बीच से निकली बस अपने सबसे बुरे वक़्त से गुजर रही है,उसके हालत खत्म होने की स्थिति में है,और सबसे ज्यादा गौर करने की बात उसका अपना दलित वोट भी खिसक रहा है,और तो और उसकी नेता भी कमज़ोर होती नजर आ रही है |

जदयू और राजद- ये दोनों दल अकेले अकेले चुनाव लड़ते हुए एक दुसरे का नुकसान करते हुए,सिर्फ भाजपा को फायदा पहुंचतें हुए नजर आये लेकिन जेसे ही बिहार की राजनीति में वो दोनों साथ आये तो उन्होंने चमत्कार करके दिखा दिया,और बिहार की गद्दी पर ये सवार हो गये है,आयर कांग्रेस भी इसमें शामिल हो गयी थी |

अब इन तमाम दलों को एक ही स्टेज पर खड़े रखते हुएं गौर करिए,की स्थिति क्या होगी? आने वाली 27 अगस्त को यही स्थिति सामने आने वाली है,बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने एक रैली का ऐलान किया जिसमे तमाम विपक्षी दल,सत्तासीन या विपक्षी सभी की सभी एक ही साथ एक ही स्टेज पर होंगे तो सबसे अहम चीज़ ये है की ये रैली आने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर रखते हुए ही रखी गयी हैमौर अगर ऐसा हुआ तो स्थिति कुछ अकग होगी क्यूंकि इन सभी दलों का हाल उन लकड़ियों की तरह है जो अकेले तो कमज़ोर है मगर साथ साथ अटूट है,और ये स्थिति अगर होती है तो ये भाजपा के लिए सरदर्द बन सकती है |

इस बात को सही सिद्ध होने के लिए ये आंकड़े गौर करने की है की,ये दो राज्य यानी बिहार और उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर 120 लोकसभा सीटें आती है,और अगर आने वाला ये विपक्षी अजेंडा अगर सही से जम जाती है तो स्थिति सच में चमत्कारिक हो सकती है क्यूंकि ये स्थिति भाजपा के चुनावी रथ को रोक सकती है,मगर क्या डूबता हुए दलों और कमज़ोर होते हुए दलों के साथ ये हो पाना मुमकिन है ? शायद मुमकिन हो शायद नही,लेकिन अभी तो सिर्फ "विपक्ष" के हालात को देखना है की उनका ऊँट किस करवट बेठता है |

असद शैख़

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