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"हम लोग खुदगर्ज़ हो रहें है"

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"हम लोग खुदगर्ज़ हो रहें है " हम लोग,भारतीय लोग,इंडियन लोग 130 करोड़ लोग जिंदा लोग,हिन्दू लोग,मुस्लिम लोग और सिख लोग और इसके अलावा भी तमाम लोग पढ़ें लिखें लोग अनपढ़ लोग और गाँव के लोग अच्छे लोग,बुरे लोग,बड़े लोग और छोटे लोग या इसके अलावा और भी तमाम लोग क्या हम लोग "खुदगर्ज़ हो रहें है?क्या हम सब लोग खुदगर्जी इख्तियार कर चुकें है ? क्या हम लोग इतने ही बुरे हो चुकें है? क्या हम लोग इतने ही भयंकर हो चुकें है सिर्फ अपना ही सोचें? ये सोचने से पहले ही थोडा सा रुक जाइये,थम जाइये और खुद ही से बहुत कुछ पूछिए.. ये "हम भारतीयों" का सवाल इसलिए अहम है क्यूंकि ये पुरे के पुरे पेड़ की कहानी को बयान करने की कहानी है,की जब किसी भी एक पेड़ की खूबसूरती की बातें बताई जाती है तो वो उसकी जड़ों से शुरू होती हुई उसके तने से होती हुई उसकी शाखों तक पहुंचती है,पत्तों तक पहुँचती है,और फिर उसकी सबसे ज्यादा अहम चीज़ उसके फलों तक पहुँचती है,यानी इस पेड़ की हर एक चीज़ खुबसुरत और बेहतर नजर आती है,ये पेड़ हमे छाया देता है,ये पेड़ हमे फल देता है,ये पेड़ हमे 'सांस" देता है,लेकिन सोचिये अगर की