शिष्टाचार का बंटाधार और भयंकर परिणाम

तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे को मारने की" इस वाकय के अंदर की भद्दी गालिया लिखने की मेरी हिम्मत नही हुई जो अब सोचिये जो वाक्य बोलने में एक बड़े बाप ने अपने बच्चे से उसके अध्यापक द्वारा अपने बच्चे को एक थप्पड़ मारे जाने पर कहे थे। दरअसल यहाँ  उस छात्र की बात हो रही है जो अपने अध्यापक द्वारा एक थप्पड़ मारे जाने पर दोगुने थप्पड़ अपने अध्यापक को मार गया जी हा हैरत में मत पड़िये अपने अध्यापक से न डरना , उसे पलटकर जवाब देना या थप्पड़ भी मार देना एक ज़माने में बाप की जगह रहे अध्यापक के लिए आज के कथित मॉडर्न छात्रो एँव इसे बहादुरी का नाम देने वाले माँ बाप के लिए ये कोई बड़ी बात नही है लेकिन आखिर क्यों हम ऐसी चीज़ों को आखिर क्यों नज़रअंदाज़ कर देते है या वो माँ बाप कैसे नज़रअंदाज़  मगर क्या वो माँ -बाप  जानते है की उस जाहिलाना चीज़ जिसे बहादुरी समझ रहे है उसका शिकार वो खुद भी हो सकते है या उससे भी ऊपर वही छात्र दादरी में अख़लाक़ और विकासपुरी में डॉ नारंग को मौत के घाट भी उतार सकते है??

अपने बचपन में कक्षा 1 में मेने एक पाठ पढ़ा उसमें लिखा था अपने बड़ो का आदर करो सुबह उठकर उनके पेर छुओ लेकिन आखिर क्या ये चीज़े आज मायने रखती है या ये संस्कार ज़माने में भी रह गए है और अपने अध्यापको जो माँ बाप की जगह होते है उनका आदर करना तो छोड़िये अब अध्यापको की कोई हैसियत ही नही है और उन्हें मारना या धमकी देना तो मामूली सा है शायद इसे आम समस्या समझा जा रहा है लेकिन ये सचमुच तबाही की तरह है जिसमे सब बहते चले जायँगे। अगर बात की जाये परिणामो की तो वो दादरी और विकासपुरी में हमारे सामने आ चुकी है हो सकता है ये थोडा अजीब लगे की कैसे एक छात्र की हरकत को एक खून में लतपथ लाश से में जोड़ रहा हु मगर यही सच है आखिर सभी जानते है की हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और एक 16 साल के नाबालिग़ द्वारा जब हम अपने बच्चे को मारना तो दूर उसके सामने उसके अध्यापक को मारकर उसे एक और विकासपुरी और दादरी के लिए तैयार कर रहे है वो अभी न सही मगर जल्द ही एक और विकसपुरी जेसी शर्मनाक और बर्बरतापूर्ण हत्य कर दे और वो भी शायद उस नाबालिग़ और उसके माँ -बाप के लिए एक छोटी सी घटना मात्र ही होगी??

आखिर क्यों हम अपने बच्चों को या छोटो अपने से बड़ो का आदर और सम्मान नही सिखा रहे है क्यों आखिर अपने घर के बड़ो के सामने ही एक नौजवान किसी रिक्शावाले,ऑटोवाले और यहाँ तक की मज़दूर तक को डांट देते है ,झिड़क देते है और कभी कभी तो आप दादा तक की उम्र वाले तक पर हाथ तक उठा देते है और इससे भी ज़्यादा शर्मनाक ये है इस सब के बावजूद उसके साथ मौजूद बड़े उसे डांटने की जगह शाबाशी देते है ये कोनसा समाज बना रहे है ये कोनसी बहादुरी दिखा रहे है ये समझना सच में मुश्किल है बहुत मुश्किल आखिर क्यों हम ये समझ नही पा रहे है की जिस नाबालिग़ को या उसकी अभद्रता को हम बहादुरी का नाम दे रहे है वही और थोडा बहादुर बन जाने के लिए अख़लाक़ को पीट पीट कर नाले पर फ़ेंक देता है विकासपुरी में डॉ नारंग को सिर्फ बॉल लग जाने पर उसके बच्चे के सामने बेदर्दी से मार देता है या अपने आत्म सम्मान के लिए दो मासूम बच्चों के बाप को बीच चौराहे पर मार देता है और यकीन मानिये इन सभी घटनाओ का या अन्य ऐसे शर्मनाक हादसों का अपराधी वही छात्र है जिसे हम अपने अध्यापक पर हाथ उठाने को लेकर बहादुरी पर बात खत्म कर देते क्योंकि अगर माँ बाप ने उस समय इस छात्र को या अन्य बच्चों को गलती का एहसास कराया जाता तो शायद आज सभी बेगुनाह जो ऐसी किसी भी कृत्य में मारे गए शायद वो आज ज़िंदा होते शायद ।

असल में सारी चीज़े घर से ही शुरू होती है अच्छाई ,बुराई ,तमीज और तहज़ीब सभी चीज़े माँ बाप से होती है और हो सकता है एक छात्र की छोटी सी विद्यालय की घटना को मेरा इन सभी जोड़ा जाना उचित न लगा हो मगर किसी को भी ये कहने से पहले सुलताना डाकू की आखिरी मांग याद कर लेनी चाहिए जो फांसी के समय उसने की थी और अपनी माँ को बुलाकर उसका कान काट लिया था और कहा था की काश अगर तूने मुझे अंडा चुराने पर मारा होता तो शायद आज में फंसी पर न लटकता यही सच है उन मौतों का जो होती रही है और हो रही है अगर हमने उस माहोल को नही बदला जो एक ऐसे भेड़िये को पाल रहा है और उस भेड़िये के मुंह इंसानी खून लग गया है जो कभी न कभी ज़रूर अपने मालिक को भी मार गिरायगा........

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