हसरत मोहानी का "इंकिलाब"

"इंकिलाब ज़िंदाबाद" जब ये नारा बोला जाता है तो तमाम आंदोलन और तमाम विरोध एक साथ सिर्फ एक धागे में पिरो दिए जाते है,और इस नारे के जनक का ही आज जन्मदिन है। आज मोलाना हसरत मोहानी जी का जन्मदिन है आज ही के दिन इस महान स्वंतत्रता सेनानी,पत्रकार और हिंदी ग़ज़ल कहने वाली अज़ीम शख्सियत की पैदाइश हुई थी।

मोलाना हसरत मोहानी साहब का जन्म 1 जनवरी 1875 को उन्नाव के "मोहान" गांव (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। स्वन्त्रता की लड़ाई में अपने हर एक फन से देश की आज़ादी के लिए अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया और हर एक मौके पर देश के लिए उसकी आज़ादी के लिए हसरत मोहानी ने अपनी सारी उम्र गुज़ारी ।

मोलाना हसरत मोहानी का ताल्लुक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से रहा और वहां पर अंग्रेज़ी हुक़ूमत होने के बावजूद भी वहां भी आज़ादी की शमा जलाए रखी और इसी वजह से उन्हें तीन बार यूनिवर्सिटी से निकाला भी गया ।यहाँ से ही मोलाना ने बीए की डिग्री हासिल करि ।मोलाना हसरत मोहानी ने एक पत्रिका "उर्दुए मुअल्ला" भी निकाली और उसमें ही  तमाम मुद्दों पर जहां तमाम सियासी मुद्दों पर आज़ादी के मुद्दों पर लेख लिखें।

मोलाना हसरत मोहानी उन तमाम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे जिन्होंने अपनी हर एक काबिलियत की बदौलत हर एक क्षेत्र में देश की आज़ादी के लिए जी जान लगाया और इनमें से एक मोलाना हसरत मोहानी भी है।मोलाना हसरत मोहानी की शायरी,लेख और राजनीतिक शुरुआत भी देश के लिए ही थी,जिसमे उन्होंने पहले कांग्रेस से जुड़े और फिर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की भी नींव रखी ।

मोलाना हसरत मोहानी ने अंग्रेजों के सामने कोई भी शर्त न मान लेने की वजह से कई बार जेल जाना भी पड़ा। मोलाना हसरत मोहानी ने ही उस वक़्त "आज़ादी ऐ कामिल" यानी पूरी आजादी का नारा दिया । इस अज़ीम शख्सियत का इन्तेक़ाल 13 मई 1951 को लखनऊ में हुआ आखिर में इन स्वतंत्रता सेनानी ने आज़ादी देखी और अपनी तमाम उम्र आज़ादी के लिए गुज़ारी।

मोलाना हसरत मोहानी की पैदाइश का दिन हमे याद दिलाता है और उम्मीदों से भरता है कि देश के लिए हमेशा आवाज़ उठाई जाती रही है और इसमे तमाम लोगों की हिस्सदारी कितनी है ।आज का दिन हमे इन जैसे तमाम अज़ीम शख्सियतों को याद करना चाहिए और इनकी विरासत को आगे बढ़ाना चाहिए।यही हसरत मोहानी साहब के लिए असल खिराज ऐ अकीदत है।

असद शैख़

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