कानून... और बदलाव..

इंसान ईश्वर द्वारा निर्मित सबसे बेहतरीन मख़लूक़ है जिसे ईश्वर ने खून की नाज़ुक बूँद से बनाया गया,इंसान जिसे एक ही माँ बाप के ज़रिये पैदा किया गया जो सभी के सभी एक ही माँ बाप की औलाद है वो आपस में कितनी चीज़ों को बदल चुके है या कितने उलजलूल बदलाव कर चुके है इसकी कोई गिनती नही लेकिन कानून उसमें से एक है जो नज़र के सामने है जो बुराई से रोकने का माद्दा रखता है और किसी हद तक असर रखता है और भारत में कानून को स्तिथि क्या है?

कानून इसके नज़रिये से बात करें तो जिस तरह पानी को बहने से रोकने के लिए जिस तरह रुकावट बनाई जाती है ठीक उसी तरह कानून भी एक अहम रुकावट पैदा करने का काम करता है, और बुराई से रोकने काम काम करता है और डर बेठाता है की नही मुझे गलत काम नही करना वरना सज़ा मिलेगी, यही वजह है को आज से 1400 से साल पहले भी इंसान को खड़ा करके काटने वाले अरबी लोगों पर जब ये "कानून" लागू किया गया तो वो बदल गए उनके अंदर का ज़मीर जाग गया.

कानून को मद्देनज़र रख अगर बात करे तो अरब के रेतीले इलाके मक्का शहर में मदीने जंग जीतने के बाद ही पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ) और उनके लोगों की हुक़ूमत हो गयी थी लेकिन इस्लामी कानून के हिसाब से किसी भी बेगुनाह को नही मारा जायगा और ऐसा ही किया गया और तो और वहा इस्लामी कानून के तहत हुक़ूमत तय हुई और सजा मुकर्रर भी की गयी जेसे चोरी पर हाथ काट देने की सज़ा और लोगों में गुनाह से डर का ऐसा मामला बेठा की खुले में भी कोई भी क़ीमती चीज़ रखने से भी चोरी नही होती और न आज तक होती है.

अब आप कहेंगे ये क्या मिसाल हुई अरब से हमारे देश का ताल्लुक़ क्या है? ताल्लुक है और वो ये है की एक तरफ जहा ज़रा सी चोरी पर हाथ काट देने की बात है वही हमारे मुल्क में बड़े से बड़े गुनाह करने के बाद भी 5 से 7 साल जेलों में रखा जाता है? या फिर पैसे,रौब या सियासी ताक़त के बल पर रिहाई मिल जाती है और हम समाज में एक और गुंडा पैदा कर देते है, अब उस गुनहगार की तो छोड़ दो सोचों फिर डर किस्मे रहा कानून का?? किसी में नही लगभग सभी चीज़ों की आज़ादी है, बात न्यायपालिका की नही,बात पुलिस की नही है वो अपनी जगह सही है मगर व्यवस्था में ज़रूर एक दिक्क़त है.. और वो है कानून का डर न होना.

आप खुद अंदाज़ा लगा लीजिये की अगर भारत जेसे बेइंतेहा बलात्कार होने वाले या यु हर 3 मिनट में एक बलात्कार होने वाले देश में यदि उसकी सज़ा आधा ज़मीन में गाड़कर संगसार करना,या 100 कोड़े मारना(जिसमे मौत भी हो सकती हो) जेसी चीज़े लागू होंगे तो जवाब एक ही होगा सारे बलात्कार 7 दिन में बन्द हो जायेंगे बिलकुल बन्द , अब हर काम में टांग अड़ाने वाले कुछ लोग कहेंगे ये ज़ुल्म है तो मेरे अज़ीज़ों अरब में कभी किसी के कटे हाथ देखें है? नही न तो ये काफी है..

मगर बिल्ली के गले में घण्टी बांधे कोंन इस तरह की चीज़ों को कानून में जोड़े कौन? क्योंकि फिर बदनज़री,लफ़्फ़ाज़ी और नाजायज़ ताल्लुक़ सबको खत्म करना होगा मगर इतना आसान नही है बदलना बस कहना आसान है और कुछ नही बाकी हो भी कुछ भी हमारे देश में कानूनी तौर पर कई बदलाव होना ज़रूरी है और ये सच है...

असद शैख़..

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