बस ट्रेंड मुद्दा ....

ट्रेंड यही होना सबसे ज़्यादा मायने रखता है, और हो भी क्यों न इससे एक इमेज क्रिएट होती है, समाज की,देश की,राष्ट्रवाद की,राजनीति की लेकिन इस बार कुछ और हुआ है इस बार एक सच सामने आ गया है. इस बार एक लाश दूसरी लाश को ढो रही है,उसकी बेटी जी हाँ "बेटी बचाओ" वाली बेटी बिलखती रही ..

12 किमी तक एक लाश दूसरी लाश को घसीटती रही ,बेफिक्र रहिये में कोई भारी भरकम बातें नही लिखूंगा,न ही एक शानदार प्लेट बिरयानी खाने के बाद यहाँ ये लिखूंगा उस "लाश" मांझी को लाश उठाये देख मुझसे खाया नही गया, बात कुछ और है...

असल में जो शो फेसबुक और ट्विटर पर चला उसके बारे में है सिर्फ इतनी छोटी है जी हाँ छोटी क्योंकि जब हमारे यहा कोई "नीच" एक "ऊँचे" के यहा पानी पीने की हैसियत नही रख पाता तो हम चुप हो जाते है "अरे जाने दे न" कह देते है तो किसी आदिवासी,गरीब,भूखे और एक बच्ची को बाप का अपनी टीबी से मरी बीवी की लाश को कन्धे पर रख कर 12 किमी छोटा ही है.

लेकिन इससे भी संम्मानजनक बात ये है की वहा एक मीडियाकर्मी द्वारा वीडियो बना ली गयी क्योंकि वो शायद "देशहित" में हो..
अब वो वीडियो वायरल हो चूका है तो फेसबुक से लेकर ट्विटर तक सबके मुंह में दांतों तक भरा गौंद खत्म हो गया और सब चींखने लगे है अरे जिम्मेदारी है लेकिन "मांझी" के समर्थन में नही अपने फेसबुक वासी होने के लिए पोस्ट दिखाने की बस...

"भारत बदल रहा है" "डिजिटल इंडिया" जेसे नारे लिख लिख कर तन्ज़िया लहजा इख़्तियार कर लिया गया फेसबुक को और एक नया मौज़ू मिल गया और हो भी क्या न सहानुभूति परोसने का मौका भी मिला है, आखिर अपने 30 से 40 हज़ार के फ़ोन में कई हज़ार का वाईफाई इस्तेमाल करने के बाद जब ऐसी की हवा आपके ऊपर लगने लगी तब आपको "मांझी" की मजबूरियों का एहसास हुआ चलिए कोई नही फेसबुक और ट्विटर पर कोई देखता भी नही..

लेकिन गुनहगार भी तय कर लिया कोई नरेंद्र मोदी को घसीट लाया कोई थोडा लिबरल दिखने के लिए उड़ीसा के मुख्यंमत्री को बीच में ले आया लेकिन एक आधे ने बात पकड़ ली और उस मीडिया कर्मी को भी दोषी कहा लेकिन वहा हाथ में झंडा लिए मीडिया आलोचक,मीडिया कर्मी या अब भीं उसे लोकतन्त्र का चौथा खम्बा समझने खिलाफ बोले तो मामला ठण्डा हो गया मगर वो शख्स जिसके साथ ये काम हुआ वो अब भी अपनी झोपडी में पड़ा होगा...

में इस बात को लिखने के पीछे सिर्फ इतना लिखना चाहता हु की मुझे "मांझी" पर नही अपने आप पर तरस आ रहा है क्योंकि हम सहानुभूति उन्धेलने के नाम पर "भीड़" बन चुके है जी हां और आज जब वो आदिवासी समुदाय का पूरे समुदाय के साथ हमेशा शोषित होता आया आदमी वो हमारे हाड़ मांस वाला ही जब ऐसा कुछ करता है तो हमारी पसली पढक जाती है ।

क्योंकि हमे सिर्फ आभासी दुनिया में अच्छा बन जाना है, भारी लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करेंगे क्यूंकीं आभासी दुनीया में....मगर हल क्या होगा क्यों होगा किसी को नही पता अरे ऐसे मांझी कितने ही फिर रहे है अपनी बीवी को उठाये,अपनी बच्चियों के साथ अपनी मजबूरियों का साया सर पर लिए और बोल रहे ही की बोलो हमारे लिए बोलो सिर्फ सेल्क्टिव मुद्दों पर मत लिखो वरना ऐसे माँझी बनते जायेंगे ..

लेकिन आप मोमबत्ती बाज़ जो सिर्फ नेताओं के लिए जमा हो जाने वाली भीड़ हो, एक "निर्भया" बन जाने के बाद भी हज़ारो को निर्भया बना देने वालो सोशल मीडिया की जोंक हो जो सिर्फ लाइक्स और शेयर नाम का खून पीने वाली भीड़ हो क्यों बोलने लगी,क्यों लिखने लगी आपको तो बस ताज़ा ताज़ा चूल्हे से उतरा हुआ मुद्दा चाहये और कुछ नही बाक़ी "ट्रेंड" खत्म हो जाने के बाद अगर "मांझी" की बीवी की लाश जंगल में सड़ भी जायगी तो तुम्हे क्या.... लेकिन डर ये नही ही डर ये है की कहीं "सोशलबाज़ों' में से कोई "मांझी" या "निर्भया" न बने क्योंकि फिर बस तुम ट्रेंड ही हो पाओगे..... बस ट्रेंड...

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