बदहाली के ज़िम्मेदार तुम....

15 अगस्त आज़ादी का दिन है,ख़ुशी का दिन होता है. लेकिन इस पर नज़र डाल कर अगर गौर करें और देखें की देश की सबसे पिछड़ी और अशिक्षित आबादी का हाल इस पर क्या होता है तो हैरत होती है देख कर की वो क्या कर रहे है.लेकिन दुखद बात ये है की इन चन्द लोगों की गलती का खामियाज़ा पुरे समुदाय को भुगतना पड़ता है।

अगर ज़िक्र 15 अगस्त का करे तो इस दिन मुस्लिम मोहल्लों का हाल ऐसा होता है मानो हो हल्ला मचाना उनका फ़र्ज़ हो, छतों पर डीजे लगा लेना और बेइंतेहा तेज़ आवाज़ में गाने बजाना, पतंगबाज़ी करना और शब ए रात पर हुड़दंग मचाने वाले उसकी कसर यही पूरी करते है, और शोर मचाना हो हल्ला मचाना बिलकुल आम समझतें है लेकिन क्यों? आज़ादी का जश्न नही बिलकुल नही सिर्फ अपनी छवि को शोर मचाकर और खराब कर देना और पुरे समुदाय को टारगेट कराना.

अब मुझे ये पूछना है की छतों से चींख कर, शोर मचा कर या डीजे बजा कर कोनसी आज़ादी का जश्न हो रहा है? पता नही लेकिन अपने हालात की बदहाली और बेअक़्ली का ढिंढोरा ज़रूर पीट रहे है, और जब इतने सब से भी दिल नही भर जाता तो इसी शोर मचाने वाले गुट के मुस्लिम नौजवान बाइकों पर निकल जाते है, बिना हेलमेट 3 -3 बैठकर और तो और किसी के हाथ में तिरंगे भी होते है,आखिर क्यों शोर मचा रहे हो? क्यों डीजे बजा रहे हो? और क्यों बाइकों पर घूम कर कानून का उल्लंघन कर रहे हो?

अब बात अगर इस समुदाय के उन नौजवानों की हक़ीक़त बयां करनें की करी जाये जो हो हल्ला मचाना अपना काम समझते है तो एक एनजीओ ने सीलमपुर,मुस्तफाबाद,बाबरपुर, और गोकलपुरी जेसे भरी पूरी मुस्लिम जनसंख्या वाले इलाके के मुस्लिम समुदायों की शिक्षा के बारे में इन इलाकों समेत पुरे उत्तर पूर्वी लोकसभा में सिर्फ 1 से 2 परसेंट लड़कियां ही 12वीं से आगे की शिक्षा ग्रहण करती है,और लड़कों की तादाद महज़ 5 परसेंट है अब बताइये क्या इस समुदाय के नौजवान अपने गुनहगार खुद नही? अब बताइये जिस समुदाय की शिक्षा का ये हाल हो क्या उस समुदाय के नौजवान पतंगबाज़ी और कबूतर बाज़ी समेत अन्य गैर ज़रूरी कामों में संलिप्त होने चाहिए?

बात किसी एक समुदाय को निशाना बनाने की कोशिश की नही है , बात ये है की ये हालात क्यों? में बस पूछना चाहता हूँ इस ज़िम्मेदार समाज के बड़े लोगों से,रहनुमाओं से या बुद्धजीवियों से आखिर क्यों मुस्लिम समुदाय के लोगो के इलाक़े में बच्चे और नौजवान पढ़ाई से हट कर चौराहों पर खड़े,पतंबाज़ी के लिए छतों पर और कबूतर बाजियों के लिए सीटियां बजाते क्यों नज़र आते है?? शायद किसी के पास कोई जवाब न हो कोई संशय न हो लेकिन ये बात बिलकुल सच है और मुस्लिम बहुल इलाके इस बात की गवाही देते नज़र आ रहे है।

अब ये बात भी बिलकुल सच है की मुस्लिम समाज के कथित ठेकेदार सरकारों को गरियाएंगे, आरएसएस को कोसेंगे और कुछ तो मुझे ही क़ौम के खिलाफ बात दे लेकिन में उनसे पूछना चाहता हूँ की क्या आपकों पता है आपका बेटा/बेटी, या भाई/बहन कहा क्या ग़ुल खिला रहे है अरे आपकों क्या पता होगा आप तो खुद पता नही किन किन चीज़ों में मशगूल है. लेकिन मुझे यहा आर आई खान(वरिष्ट पत्रकार और समाज सेवक) की कही एक बात याद आ रही है की "तुम कबूतरों को मग़ज़ और बादाम खिला रहे हो और तुम्हारी औलादें अय्याशियों और चौराहों पर ज़लालत में मुब्तिला है...... जारी...

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