सो कॉल्ड विवाद

अब विवाद या समाधान जो हुआ या नही इसे तो चलिए छोड़ दीजिये इससे भी ज़्यादा चिंता इस बात की है हालात क्या है मीडिया के क्यों इतना हंगामा हुआ है ?बात असल में कुछ भी हो सकती है मगर मीडिया का और उसके विश्लेषकों का हाल उस सांप जैसा हो गया जो "छछूंदर" को मुंह में भर तो लेता है मगर उसकी हालत तब बुरी होती है जब उसे पता चलता है इसे खाने पर तो में कौड़ी हो जाऊंगा और उगलने पर नामर्द बस ऐसा ही हाल है , मीडिया विश्लेषक जब मीडिया को गालियां देते है "दल्ला" कहते है और जब मीडिया की हिमायत की बात आती है तो चौथा स्तम्भ कहा जाना शुरू हो जाता है ऐसा क्यों है ? ऐसा सिर्फ इसलिये है क्योंकि मीडिया विश्लेषक अब सिर्फ कथित तौर पर मीडिया विश्लेषक है न की पत्रकारिता के धर्म के अनुसार ये बात में इसलिए नही कह रहा हु की मीडिया बुरा है या अच्छा है ऐसा इसलिए कह रहा हु क्योंकि जिस बात का विरोध यानी भक्ति का विरोध करते है वो खुद भक्ति में लीन हो गए है।

जी हा चाहे इसमें बड़े पत्र्कार हो या छोटे पत्रकार सब कस सब अपने संस्थान की भक्ति में लीन हो गए है आप उनसे उनके संसथान की बुराई करके देखिये सब पता चल जायगा अब आप कहेंगे की अरे अपने संस्थान की तो माननी ही पड़ेगी और दूसरी बात कहेंगे की तुम अभी पढ़ लो जान लो जब बड़ी बड़ी बोलना तो उनसे में पूछना चाहता हु की अगर आपका वो संस्थान  जिसमे आप काम करते है और वहा आप सही गलत कुछ नही बोल सकते है तो आप वहा काम नही करते है आप वह ग़ुलाम है और रही बात मेरी की अगर दल्लागिरि या टुच्चेपन से ही काम करना है तो मीडिया में तो नही आऊंगा चाहे नौकरी करू क्योंकि ज़मीर भी कोई चीज़ होती है और ये बात खासकर उन लोगो के लिए है हो आरएसएस को गरियाना तो चाहते हैं मगर अपने लाभ जितना ही जब कोई बड़ी समस्या होती है तो मीडिया की धाराओ का हवाला देते है तो आप  बायस्ड मीडिया वाले हो "टुच्चे" हो. और ये सेक्युलर होने का ढोंग तो छोड़ ही दीजिये....

Comments

Popular posts from this blog

शहीदी के मायने

#Metoo महज़ सवाल नही है यह आईना है...

क्या हमें फर्क पड़ना बन्द हो गया है.?