बंटते विचार

आप आजकल के सो कॉल्ड मॉडर्न किसी भी छात्र संग़ठन से मिल ले या उनके विचारो को जाने या पढ़े या समझे आप एक बात जान लेंगे की हर संग़ठन अलग अलग विचारधाराओ से जुड़े है कोई स्वामी विवेकानंद को भगवा रंग में रंगकर उनका भगवाकरण कर रहा है और ऐसा महसूस कराता है मानो स्वामी विवेकानंद को उसने खरीद लिया हो और यही हाल उन कुछ संघटनो का है जो अपने आपको अम्बेडकरवादी कहते है और उन्हें अपने लाल झंडे में  उन्होंने बाँध लिया है और वो तो आंबेडकर को अपना हथियार मान रहे है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ये है की क्या ये दोनों संग़ठन इस बात को पचा पाएंगे की स्वामी विवेकानंद की जगह सर सयद अहमद के विचारो को अपने संग़ठन को बताये?किसी और के विचारो को फैलाया जा रहा हो? या कथित आंबेडकरवादी इस बात को पचा पाएंगे की उनके संग़ठन के छात्र स्वामी विवेकानंद की ही सही बात का प्रचार करेंगे इस तरह दोनों विचारधाराएँ अगर अपनी कट्टरता को खत्म कर क्या सही बात को मान पाएंगे???

बात हमेशा ये होनी चाहिए की अलग क्या है और विचारधाराओ का अलग होना लोकतन्त्र की पहचान भी है मगर आखिर कैसे एक ऐतिहासिक शख्स को अपने सामने मॉडल बना कर रखे और दूसरे किसी को भी न तो सुना जाये और जाना जाये बल्कि दूसरे शख्सियतो के बारे ग़लतफ़हमी तक फैलाई जाती है और समाज को बांटा जाता है अब आप सोचिये क्या ऐसी चीज़े समाज के लिए आने वाली पीड़ी के लिए बेहतर है नही बल्कि  तो और इतना दुर्भाग्यपूर्ण है की अभी तो इतिहासकार बंटे है आगे चलकर महाविद्यालय और विश्विद्यालय पूरी तरह बंट जायेंगे और अभी तो थोडे विचार आ जा रहे ऐसा ही रहा तो सही बात भी जानने के लिए विचारधारा को ही बदलना होगा...

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