टाइटल

"अरे ये न्यूज़ वाले तो दल्ले होते है" ये वाक्य हालाँकि सभ्य समाज के लिए बेहतर नही है और में खुद भी इस तरह की भाषा का समर्थन नही करता लेकिन जब एक आम से लड़के के मुंह से ये वाक्य सुने तो हैरत हुई क्योंकि उसका मीडिया से तो  सम्बन्ध नही है लेकिन जब मेने इस तरह की बात कहने की वजह पूछी तो वो सच में गौर करने की उसका कहना ये है की "क्रिकेट मैच के लिए 1 घण्टे का शो करलो2 का 3 करलो मगर हद होती है जब एंकर से लेकर होस्ट तक सब के ड्रेस्सेस बदल कर खूब मज़े से शो करते है और बाकी खबरे चाहे किसी की जान की हो गयी भाड़ में" ये वजह गलत ये सही हो सकती है मगर है गौर करने वाली क्योंकि जब भारत की हार का रोना सारे मीडिया हॉउस रो रहे थे जब मलबे में दबी लाशो को कोलकाता में निकाला जा रहा था अब सोचना भी पड़ेगा ही की आखिर चौथा खम्बा इस तरह कैसे बंट गया??

ये सवाल या इस जेसे सवाल बहुत बार उठते तो है मगर इसका कोई हल होता नही टीवी पेनल्स पर नसे फुला फुला कर राष्ट्रभक्ति सिद्ध करना हो या दो धर्मो के लोगो की आपस में जंग कराना हो वो भी तब जब कोई हल न हो (चैनल की टीआरपी बढ़ना अलग है) बस इन जेसी बातों को सबसे महत्वपूर्ण मान लिया जाता है और गोल गोल सारे लोगो को घुमाया जाता है ......

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