मोहर्रम की दसवीं तारीख।

आज मोहर्रम के महीने की दसवीं तारीख है,ये तारीख गवाह है एक ऐसी आवाज़ की जो अव्यवस्था के खिलाफ उठी,जो नाहक़ के खिलाफ उठी और और अव्यवस्था फैलाने वाले नाहक़ के साथ खड़े होने वालों के खिलाफ खड़े होने वालों की,इस तारीख़ को हज़रत इमाम हुसैन(रज़ि)को शहीद कर दिया गया था और इसी तारीख़ को वो नाहक़ के खिलाफ शहीद भी हुए थे, बल्कि अपने मासूम बच्चों की जान की कुर्बानी तक दी थी।लेकिन फिर सवाल ये उठ जाता है कि ऐसा क्यों?

क्या सिर्फ हुक़ूमत वो वजह थी? या अपना ज़ाती फायदा? या इससे भी ज़्यादा कोई दुश्मनी?दरअसल ऐसा कुछ नही था जिससे हज़रत इमाम हुसैन को फायदा हो,या उन्हें कुछ हासिल हो,बात असल मे उस कानून की थीं जिसके ख़िलाफ़ उस वक़्त का हुक्मरान यजीद खड़ा था,बस इमाम हुसैन उसी के खिलाफ खड़े थे,यही वजह थी कि वो आवाज़ उठा रहे थे यजीद के खिलाफ और उसके अपने निज़ाम के खिलाफ जो उस पूरे निज़ाम के खिलाफ था जिसमे लोगों की भलाई थी।

असल मे जो निज़ाम पैगम्बर मुहम्मद(स.आ.व) ने अल्लाह तालाह के हुक्म से बनाया था,और हज़रत इमाम हुसैन के वक़्त तक चलता हुआ आ रहा था,लेकिन यजीद की हुक़ूमत में इन चीजों में बदलाव लाने की कोशिश की जाने लगी,ज़बरदस्ती की जाने लगी,आज़ाद चुनावों से लेकर, राय देने की आज़ादी तक ओर लोगों के साथ जवाबदेही खत्म हो गयी और ये सब होना उस निज़ाम के ख़िलाफ़ था,जो निज़ाम पैगम्बर मुहम्मद(स.आ.व) के वक़्त से चल  रहा था,बस उस निज़ाम को खत्म होते देख हज़रत इमाम हुसैन ने अपनी और अपनी बच्चों से लेकर खानदान तक कि कुर्बानी से गुरेज नही किया,और यजीद के खिलाफ खड़े हुए।

हां इस जंग में इमाम हुसैन शहीद ज़रूर हुए,लेकिन इस जंग के 1400 साल बाद तक उन्हें याद किया जाता है और आगे भी किया जायगा,बस यहां और इमाम हुसैन से सीखने वाली बात यही है कि उनकी शख्सियत हमे हक़ के लिए आवाज़ उठाने की ताक़त देती है,और सिखाती है कि हां हक़ के लिए खड़े हो जाइए ,और यही वजह है कि हज़रत इमाम हुसैन को आज भी याद किया जाता है,उनकी शख्सियत आज भी हमे सिखाती है,बेशक इमाम हुसैन शहीद हुए,लेकिन वो एक निज़ाम और कानून को ज़िंदा कर गए। इसी पर मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने शेर कहा है।

"कत्ले हुसैन असल मे मर्ग ए यजीद है,
इस्लाम ज़िंदा होता है,हर कर्बला के बाद"

असद शैख़

Comments

Popular posts from this blog

असदुद्दीन ओवैसी जिनकी राजनीति सबसे अलग है...

क्या है कांग्रेस की पॉलिटिक्स ?

सर सैयद डे की अहमियत...