#Metoo महज़ सवाल नही है यह आईना है...

पत्रकारिता जगत,सिनेमा जगत से लेकर सियासत के गलियारों तक #metoo लिखकर सवाल उठने लगें है,आरोप लगाए जा रहे है सवाल यह है कि क्या यही हमारे समाज की हकीकत है? क्या यही हमारे समाज का "निर्माण" है? यह हो क्या रहा है?

बहुत बारीक बात है समझने की यह हो क्या रहा है? क्यों हो रहा है? आखिर क्यों इतनी महिलाएं एकसाथ आवाज़ बुलंद कर रही है,क्या ज़रूरत है? बात सिर्फ इतनी सी है कि यह महज एक हैशटैग नही है यह "ज़ख्म" है,जिस तरह ज़ख्म कभी भी हरा हो सकता है,उस तरह यह बात भी हो रही है।यह भी हो सकता है की कुछ लोग इसे "सनसनीखेज" बना रहे है,इसे "पब्लिसिटी" की तरह इस्तेमाल कर रहे है,लेकिन बहुत बड़ा सवाल,और कलंक या यूं कह ले हमारे समाज के लिए बीमारी यह है कि अगर इन हज़ारों आवाज़ों में से,हज़ारों सवालों में से और इन "आरोपों" में से एक भी महज़ एक भी बात सही है तो इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है?

समाज की बेहतरी की बात हो या उसके निर्माण की बात हो तो तब यह सवाल ज़रूर उठता है कि इसके लिए "कानून" बहुत ज़रुरी है,लेकिन क्या हमारे पास उचित कानून है? चलिये एक वक्त को इस मुहिम को अलग कर के देखिये और बलात्कार के केसेस देखिये कितने केसेस है अदालत में जो अभी तक फैसलों से दूर है,तो यह हैरत होगी आपको जानकर की 1 लाख 33 हज़ार कैसेस ऐसे है जो आज भी पेंडिंग है हमारी अदालतों में ,तो कानून का "डर" बच भी पाएगा क्या? और जब यही स्थिति होगी तो कोंन रोकेगा अपने आप को?कोन रुकेगा गुनाह से?

असल मे समस्या यह है कि आंख हमारी तब खुलती है जब पानी सर के ऊपर होता है,वरना क्या वजह है कि आज खुलेआम इतनी लड़कियां,स्त्रियां महिलाएं आवाज़ बुलंद कर रही है,बेशक इस बहस का एक सवाल यह भी है कि "एडजस्ट" किया जाता है और यह एडजस्ट ही बढ़ावा देना बन जाता है।फिर चाहे वो स्कूल हो,कॉलेज हो,नोकरी हो कोई और पेशा,मगर बहुत सी चीजें इसलिए सामने नही आ पाती है क्योंकि हम उससे अनजान रहते है।

मैं फिर से उस बात को दोहरा रहा हूँ कि इन सैकड़ों हज़ारों आवाज़ों को अगर आप कहे कि यह "ऐसे ही है" तो ठीक है मगर इसमें से एक भी हकीकत है तो ? कोंन जवाबदेह होगा? आज बड़े बड़े नाम इसमे सामने आ रहे है क्या उन पर बात होगी? उन पर कंप्लेन दर्ज होगी? जांच होगी? शायद हो शायद न लेकिन इस हैशटैग ने कई पर्दे खोले ज़रुर है।

हां महज़ "आरोप" लगाना और सनसनीखेज बन जाना और सिर्फ "मीडिया ट्रायल" की बुनियाद पर बात करना बेहतर तरीका नही है,ज़रूरत है कानूनी रास्ता अपनाने की,और हर गलत चीज़ को "जवाब" देने की,वरना हमारे समाज की यह बीमारी लाइलाज हो जायेगी फिर हमारे पास शायद मौका भी न हो।

आज यह हैशटैग सवाल है,आपसे, मुझसे,स्त्री से पुरूष से,की क्या इस तरह की हरक़त,इस तरह का कृत्य करने के हिम्मत इसलिए नही आती है कि हमारी व्यवस्था में काफी कमी है? वरना आखिर क्यों इतनी हिम्मत बढ़ जाती है? सवाल बहुत अहम है।

इस कानून पर और व्यवस्था ही पर अमेरिकी न्याय विशेषज्ञ और जज रहे लुइस ब्रांडिज़ कह चुके है कि "अगर आप चाहते है कि लोग कानून का सम्मान करें तो ज़रूरी है कि आप कानून को सम्माजनक बनाइये"।

असद शेख

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