तमाम दुनिया के लिए रहमत

राबिउल्लअव्वल के महीने का 12रवां दिन का गवाह है एक ऐसी शख़्सियत की पैदाइश का जो तमाम इंसान के लिए रहमत बन कर आये,जिस शख़्सियत ने अपने हुस्न ए अख़लाक़ की वजह से अपने विरोध करने वाले तक को अपना क़ायल कर लिया,अपनी क़ाबिलियत के दम पर लोगों को अपने मॉड्यूल के बा अख़लाक़,तक़वे,क़वानीन और बेहतरीन पॉलिसी को लेकर लोगों के सामने रखा और इसी तरह मज़हब ए इस्लाम के ज़रूरी बिंदुओं को तमाम दुनिया के सामने और एक बहतरीन मॉड्यूल सामने रखा ,ये शख़्सियत कोई और नही ये है पैग़म्बर मुहम्मद(स.अ) जिन्हें तमाम दुनिया के लिए रहमत भी कहा जाता है,पैग़म्बर मुहम्मद वो शख़्सियत है जो एक अँधेरी गुफा में चमकदार रौशनी की तरह है.

इस बात को सिर्फ बताने के लिए नही कहा जाता है बल्कि इस के पीछे वजह है पैग़म्बर मुहम्मद के हर इंसान से जुड़े खाने पीने,रहने,सोने,ज़िन्दगी,मौत,शादी सेक्स,बच्चे,परिवार और सबसे ज़रूरी औरतों के बारे में तरीक़ों का ये बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पैग़म्बर मुहम्मद जिस ज़मीन पर पैदा हुए जहा इंसान इंसान के खून का प्यासा था,बच्चियों को ज़िंदा दफ़्न किया जाता था,औरतों को पैर की जूती समझा जाता था और औरतों के साथ नाजाइज़ रिश्तों के लिये भर इस्तेमाल किया जाता था वहां हर बात के लिए कानून बनाया जाना ,हर चीज़ के लिए दायरे बना देना क्या एक चमत्कार जैसा नही है? बेशक़ आप इस बात के लिए इंकार कर सकते है लेकिन एक शख़्सियत भर के कहे पर इतनी तादाद में उनकी सोच को मानना,उस पर यक़ीन करना और मज़हब ए इस्लाम क़ुबूल लेना सच में एक चमत्कार है.

पैग़म्बर मुहम्मद की ज़िंदगी दुनिया के हर शख्स के लिए प्रैक्टिकल है जो एक बाप है तो उनकी तरबियत से फातमा(र.अ)जैसी बेटी सामने आती है,एक शोहर है तो हज़रत आयशा जैसी बेमिसाल शख्सियत वाली बीवी उनकी है और एक भाई है तो शेरें खुदा हज़रत अली उनके सामने है और एक योद्धा है तो 313 के काफ़िले के साथ हज़ारों के सामने जीत सामने आती है ये मिसालें काफी भर है,दुनिया के अंतिम ईश दूत की खूबियों को बयां करने के लिए और काफ़ी है उन लोगों के लिए जो पैग़म्बर मुहम्मद के नाम पर दुश्वारियां कर रहे है,पैग़म्बर मुहम्मद वही शख़्सियत है ख़लीफ़ा(राजा) होने के बावजूद अपने उसी कच्चे घर में रहे जहा शुरू से रहते,अपना खर्च उतना ही रखा जितना ज़रूरी था और इतना की पुरे तालाब के होने के बावजूद भी सिर्फ एक लोटा लो ताक़ि पानी जैसी ज़रूरी चीज़ ज़ाया न हो,लेकिन क्या उनके अनुयायी उनकी इन बातों को पूरी तरह मान रहे है? या कुछ ही तरह मान रहे है?

शुरूआत उस बात से जो पैग़म्बर मुहम्मद ने सबसे पहले की बराबरी से अपना अंतिम ख़ुत्बा हो हमेशा तमाम दुनिया के "इंसानों"को एक माँ और एक बाप की पैदाईश बताया,काले को गोरें पर,अमीर को गरीब पर और अरबी को ग़ैर अरबी पर कोई बढ़ोतरी नही बस बड़ा है तो सिर्फ वो जो तक़वा रखता है यानि सभी का हक़ अदा करता है,रहम दिल है लेकिन मुस्लिमों में ऐसे लोगों की तादाद कितनी है? अब दूसरी बात की कभी भी किसी तरह से बंटना मत लेकिन आज मुस्लिम समाज ज़ात,बिरादरी,फ़िरक़े, मसलों और तहज़ीब तक पर बंट रहा है बताइये क्या ये मुस्लिम समाज है? ये कम से कम बुनियादी तौर पर तो सही नही है,सवाल यही है इंसान की खूबियों से सीखा जाता है,इंसान के किये कामों से सीखा जाता है लेकिन मुसलमान कितना सीख रहे है,क्या ऐसी कुर्बानियां,हक़ परस्ती,सच्चाई,ईमानदारी,और सलीके को सीख पाएं जो पैग़म्बर मुहम्मद ने अपनी 63 साल की उम्र और 23 साल की नुबूवत में दी थी,मुस्लमान इसका एक प्रतिशत भी नही कर रहे है,और इसलिए मुसलमान हर समाज में सोसाइटी में पीछे है.

मुसलमानों को कम से कम उन लोगों के बारे में सीखना चाहिए जो आज भी पैग़म्बर मुहम्मद के 1400 साल बाद तक भी सिर्फ उनके लाइफ स्टाइल, अख़लाक़ और रणनीतियों को देखकर इस्लाम कुबूल कर रहे है,क्योंकि पैग़म्बर मुहम्मद का जीवन खुद एक उदाहरण है बेहतरीन लाइफ स्टाइल का जो एक शख्स की होती है ,और बदलना चाहिए अपने अख़लाक़ को,तरीक़ों को,शादियों को और औलादों को और सबसे ज़रूरी अपने आस पास के माहौल को उनहे याद रखना चाहिए की पैग़म्बर मुहम्मद का ही एक कथन है कि "साफ़ सफाई आधा ईमान है" और इस बारह रबीउल अव्वल पर हर उस चीज़ को छोड़ देना चाहिए जो पैग़म्बर मुहम्मद से जुडी हुई नही और लक़ब लेना चाहिए अपने अंदर बदलाव का तभी शायद पैग़म्बर मुहम्मद की ज़िन्दगी पर बहतर तरह से चला जा सकता है और तमाम दुनिया के लिए मिसाल बना जा सकता है,बाकि इस 12बीरबीउल अव्वल पर पैग़म्बर मुहम्मद के लिए अंतिम में एक शेर जो शायद पैग़म्बर मुहम्मद के लिए बना हो "हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है बड़ा मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा" रबीउल अव्वल की और एक नए लक़ब की बहुत मुबारकबाद...

#असद_शैख़.....

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