गांधी...

गाँधी जिस शख्सियत के बारे में बचपन से पढ़ा,सुना या जाना अच्छा भी बुरा भी, लेकिन एक बात हमेशा चुभती थी की क्यों देश को आज़ाद कराने वाली शख़्सियत को क्यों कोई बुरा भला कहेगा,हां दो अलग धारणाएं बन गयी थी दिल में जो गाँधी को लेकर कन्फ्यूज़ करती थी.

अगर बात गाँधी जी की ज़िन्दगी की करें तो वो खुद अपनी कोताही,गलती,नाकारगी को अपनी बियोग्राफी में बयान करते है और यक़ीन मानिये ये एक बहुत बड़ी बात है बहुत हिम्मत का काम है, फिर उसके बाद हम क्यों गाँधी जी को उनके व्यक्तित्व को लेकर बुरा कहे..

अब बात गाँधी जी के विदेश जाने की जहा जाकर उन्होंने वो आंदोलन शुरू किया जो सच में अद्भुत था,मगर जब वो भारत आएं तो उन्होंने चंपारण जाकर यही काम किया, ऊंच नीच को खत्म करना चाहा, लेकिन इन सारी बातों पर गांधी जी वहां विफल हो गए जहाँ उन्हें जातिवाद का विरोध करना था वो जातिवाद के साथ खड़े नज़र आये.

इसके बाद जब बंटवारा गांधी जी के हाथ के नीचे हो चूका,साम्प्रदायिक दंगे छिड़ चुके (वो अलग बात है गाँधी जी इसके ज़िम्मेदार है या नही) लेकिन फिर भी गांधी जी जलती हुई दिल्ली,दंगों की आग में जलती हुई दिल्ली को छोड़ कर (नोआखली) चले गए क्यों ये सवाल है, मगर जितने लोगों से वो मिल सकते थे उससे ज़्यादा गाँधी जी ग़ैर हाज़िरी में मर गए और बेघर हो गए.

हद तब हो गयी जब गांधी जी एक रैली में चांदनीें चौक में भाषन देने गये तो वहां एक भी मुसलमान नही था(ये गाँधी जी ने ही कहा था) हां गाँधी जी ने पाकिस्तान का पैसा उसे दिलवाया उससे हमें मतलब नही लेकिन हां गाँधी जी यहां भी विफ़ल हुए.

लेकिन दुखद स्तिथि ये है कि गांधी जी जिस लोकतंत्र की बात करते थे वहा सवाल और जवाब तथ्यात्मक होने थे परंतु फिर भी गांधी जी से ही ये सवाल उट पटांग तरह से पूछे गए जो बहतर नही है, हमे व्यक्तिगत जीवन से सवाल था नही हां जहा से था वो उठाया भी और उठाना भी चाहये..

लेकिन हां जब गाँधी जी ने हमेशा अंग्रेज़ो के खिलाफ आवाज़ उठाई मगर अहिंसात्मक,तथ्यात्मक और बिना एक भी जान लिए जो एक बहतरीन कदम था,क्योंकि अपने दुश्मन से भी ऐसा रवय्या खूबी है,कामयाबी है एक विचार है.

अंतिम बात हमे हर बहतर बात को जानना समझना चाहये तभी तथ्यात्मक बात करि जाती है और वो भी तब जब बिना तथ्यों की होड़ हो तो ज़रूरी है हर स्तिथि ,हर व्यतित्व को पढ़ कर,समझकर उसके बारे में बोलने की क्योंक़ि अब इस की ज़रूरत है तभी बिना भक्त बने सही बात जानी जा सकती है, तो गांधी जी को जाने पढ़े,लेकिन अंधभक्त न बने...

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