होटलनामा....

कोहली की लगभग होती हुई सेंचुरी को छोड़कर में होटल से रोटी लेने निकला गर्मी और उमस से हाल बुरा है बहार जाने की कोई सोचता भी नहीलेकिन फिर गया और होटल पहुंचा। होटल का हाल ऐसा था मानो किसी"भट्टी" में कुछ टेबल्स लगी हो और वहा पर खाना खिलाया जा रहा हो और वहा घमौरियों और पसीनो से झूझते कुछ मज़दूर जिसमें सब से कम उम्र का 10 11 साल होगा और शायद उसे इतना भी नही पता था की गर्मी में आराम भी हो सकता है क्या या बंधुआ मज़दूरी किसे कहते है उन देश के मज़दूरों में सब से ज़्यादा उम्र वाले मेहनत,समस्या,परेशानी और हिम्मत का काम करने वाले शख्स की उम्र 60 के करीब थी ,शायद ज़्यादा ही होगी उस होटल पर और भी लोग थे,एक टीनएजर जिसकी उम्र 19 के करीब थी ,एक 17 के करीब का था लड़का और 23 ले करीब का नौजवान शायद इस उम्र के अगर हम देखेंगे तो इस उम्र में नौजवान मोबाइल,  बाइक ,गर्लफ्रेंड और दोस्तों के साथ मज़े से घूमते है ,और अपनी जवानी का भरपूर फायदा उठाते है,कुछ तो शायद बाइक्स और कारों में मज़े करते फिरते हो और अपनी उन फोटोज को फेसबुक पर अपलोड कर लाइक औए डिस्लयक की अजीब जंग में फंसे हुए रहते है लेकिन ये नौजवान और वो रिटायर आदमी आखिर ऐसा कोनसा फर्क है इन दोनों लोगो में ऐसा कोनसा डिफरेंस है जी ये इन ऐशो आराम और मज़े की ज़िन्दगी से दूर तो छोड़ दीजिये अपनों जाइज़ ज़रूरतों के लिए भी अजीब जद्दोजहद में पड़े हुए जान लेती गर्मी में भी भभकती हुए एक 20 ग़ज़ के होटल में महज़ अपने पेट के लिए अपने परिवार के पेट के लिए 2 जोड़ी कपड़ो के लिए ये गर्मी ये तंगहाली और ग़रीबी और अनजानी ज़िन्दगी गुज़ार रहे है।

उस रिटायर और लगभग बूढ़े आदमी की अगर हम बात करे तो उसका काम 48 डिग्र्री की भयंकर और जानलेवा गर्मी में तंदूर पर रोटियाँ बनाना है जी हा तंदूर पर रोटिया बनाना सारी हिम्मत ,ताक़त और बहादुरी एक तरफ हो जायगी सिर्फ वहा खड़े होने में तो वहा मालिक के डर से रोटियां बनाने की तो बात ही अलग है ,उस शख्स को देखकर मेरे दिमाग में 2 बातें आयी की ये कोन है? पता चला ये आज़ाद भारत का आज़ाद शख्स है और"देशभक्त" भी है दूसरी की क्या कोईनेता बड़े की तो छोड़ दो कोई छुटभैया सा नेता भी इस हाल में है?फिर पता चला नही हालात को देखकर सिर्फ इतना समझ पाया की के सारी समस्याएँ जो इस एक होटल में है सोचिये पुर ज़िले में कितनी होगी पुरे राज्य में कितनी होगी पुर देश में कितनी होगी ,चलिए होती होंगी जितनी होगी हमे क्या है हमे ये तो ऐसे किसी का फ़ोटो क्लिक कर फेसबुक और व्हट्सऐप पर शेयर करना है और तारीफ़े बटोरनि है लेकिन थोडा आगे जाकर सोचिये की जिस शख्स की फ़ोटो वगेरह शेयर करने भर से ही इतने लोग इमोशनल हो जाते है और उस फ़ोटो को शेयर करने लग जाते है तो सोचिये वो शख्स कितना परेशान होगा कितना अकेला होगा और वो सारे काम करने वाले कैसे 20 ग़ज़ के घर नामक घोसलें में बिना कूलर के रह रहे होंगे ये सवाल हमे झंखझोर सकते है क्योंकि जहा हम गर्मी में बाहर निकलने भर से बच रहे है वहा किसी बड़ी ज़रूरत की वजह से ही तो वो बूढा आदमी तन्दूर पर रोटिया बनाने को मजबूर रहा है .

आपके हिसाब से वजह अलग हो सकती है लेकिन जो बात सच है अगर वो सारे मज़दूर अपने बदन को जलाकर होटल पर खाना न बनाये और वो बूढ़ा व्यक्ति तंदूर में रोटिया न बनाये तो उन्हें और 1000 किमी दूर घर वालो को रोटियां न मिले और हो सकता है वो मर भी जाये लेकिन ये सबके लिए आम बात है सब इस बात को इग्नोर ही करते है ,मगर अंत में जो में जान पाया की ये सारे मज़दूर है और इनकी पेट की भूख सबसे ज़्यादा ज़रूरी है और जिस तरह संविधान ने सबको बराबरी का दर्जा दिया है वो इन्हें वो बराबरी नही मिली है इन्हें इनका हक़ नही मिला है यही वजह या  वजह जो भी रही हो लेकिन ये  मज़दूर है बस इतना सोच कर में घर आ गया और सोचता ही रह गया...‪#‎वंदे_ईश्वरम

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