"फेक न्यूज़" और सोशल मीडिया.
"फेक न्यूज़" इस शब्द के शाब्दिक अर्थ पर यदि गौर करें तो ये "उल्लू बनाना" नज़र आता है और न्यूज़ यानी खबर ऐसी खबरें जो "उल्लू बनाने" के काम आ सकें,अब अगर गौर करें तो देखने मे ये आएगा कि कौन किसे और क्यों "उल्लू बना" रहा है? यानी फेक न्यूज़ दिखा रहा है? इस बात की बुनियादी वजह राजनीतिक और मानसिक धारणा को मजबूत करना है और इसके लिए अलग अलग हथकंडे अपनाने से जुड़ी है।
"फेक न्यूज़" ये वो दांव है जिसके द्वारा एक आबादी को,एक बहुत बड़ी तादाद को बहुत आसानी से "भीड़" में तब्दील किया जा सकता है। इसके बाद आपकी मानसिकता में ज़हर भरा जाता है। इसके बाद एक नफरत कि चिंगारी को धीरे धीरे बढाया जाता है और आपको "उत्तेजित" किया जाता है और एक शक्ल आपके "दुश्मन" की,आपके "समुदाय" के दुश्मन की या आपके "समुदाय" के दुश्मन की भावना कब आपके भीतर आ जाती है आप समझ ही नही पातें है और ये सब करती है "फेक न्यूज़"।

फेक न्यूज़ भारत के परिदृश्य में तो जैसे "सुनहरी" सिद्ध हो रही है हद तो ये हुई जा रही है अब "साम्प्रदायिक तनाव" तक इनकी वजहों से हो रहें है।इतना सब कुछ इसलिए क्योंकि किसी ने एक भोजपुरी फ़िल्म का सीन ये लिख कर लगातार बताना शुरू कर दिया कि "ये हिंदुओ का अपमान हो रहा है बंगाल में" और धड़ल्ले से इस तस्वीर को सैकड़ों की तादाद में लोग शेयर भी करने लगें, हालांकि तमाम ज़िम्मेदार मीडिया संस्थानों ने इस को "फेक न्यूज़" घोषित किया।
लेकिन इसके बाद तक तो लोगों के दिमाग़ में और कम से कम उन लोगों में दिमाग मे वो तस्वीर बैठ चुकी थी। जो शायद इसके गलत होने को नहीं जानते होंगे।ऐसा ही कितना कुछ मुज़फ्फरनगर दंगों के वक़्त कितने ही समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया, जिसमे "आज़म खान" के द्वारा एक फ़र्ज़ी कॉल की बात कही गयी ।क्योंकि वहां माहौल साम्प्रदायिक था इसलिए उस खबर ने आग में घी का काम किया और सोशल मीडिया पर तमाम जगहों पर ऐसी बातें उस वक़्त चलती हुई नजर आई।
ये खबरें कभी तो इसलिए होती है कि महज़ राजनीतिक फायदा हो मगर अक्सर इसलिए भी होती है कि "राष्ट्रवाद" जैसे मुद्दों को अपनी तरह घुमाया जा सकें। जहां पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से जुड़े न जाने कितने तथ्यों को तोड़ा जाता है। एक जगह उनके दादा का नाम "गयासुद्दीन" दिखा कर पूरे के पूरे नेहरू गांधी परिवार को "मुस्लिम" से जोड़ कर दिखाया जाता है दूसरी तरफ इसके बाद "हिंदुत्व" की झंडा बरदारी भी हो गई ।क्योंकि ये फेक न्यूज़ है इसलिए ये गलत तो बेशक हो गयी मगर कौन आखिर "डिस्कवरी ऑफ इंडिया" पढ़ा होगा और सवाल भी करेगा?
फेक न्यूज़ की खबरे यही नही है और भी है जहां एक जगह भारत की सैटेलाइट तस्वीर दिखाई जाती है,और उसे गौरवान्तित होकर पेश किया जाता है। क्योंकि मुद्दा भारत से जुड़ा होता है इसलिए "शेयर करें बिना न हटाएँ" जैसी बातें जोड़ दी जाती है,और इसके बाद यदि कोई इसके खिलाफ जाता है और इस तस्वीर को "गलत" कहता है तो वो मानों देश का दुश्मन जैसा नज़र आता है। क्योंकि ये खबरें हमारी मर्ज़ी के मुताबिक होती है इसलिए इन्हें हम "सही" मानते है। और सही पर "सवाल" क्यों?
असल मे इन "फेक न्यूज़" के ज़रिये जो चीज़ गौर करने वाली है वो ये है कि इन खबरों को देखने के बाद,सुनने के बाद या पढ़ने के बाद पाठक सोचता और समझता नही है क्योंकि इस पाठक में बहुत बड़ी तादाद में ऐसी संख्या के लोगों की होती है जो पढाई ,अध्ययन और बातचीत में विश्वास करते नही है।और जब कोई बड़ी खबर या सनसनीखेज खबर सामने आ जाती है तो उस पर झट से विशवास कर लेतें है । इसके बाद ही फेक न्यूज़ प्रोपैगेंडा कामयाब हो जाता है। क्योंकि बात की तहक़ीक़ नही होगा तो सब कुछ सही सिद्ध होता है।

इस वायरस से बचा जाना अब बहुत महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि जब तक "ऑल्ट न्यूज" जैसी संस्था कोई खुलासा करेंगी तब तक को कोई प्रधानमंत्री "अय्याश" सिद्ध हो चुका होगा और कब हम खुद ही खुद विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित कर चुके होंगे,मगर फेक न्यूज़ से बचा जाना आज के वक़्त में एक बड़ी चुनोती है वो भी तब सोशल मीडिया में बहुत तेज़ी से सब कुछ फैल जाता है ।इससे बचना या बच पाना बड़ा काम है।
असद शैख़
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