मुस्लिम सियासत और "मुस्लिम समाज"

एक राजनीतिक पार्टी में मुस्लिम नेता मतलब? कुछ आधार उसका? उसका अहमियत उसकी? चलिये वो अलग बात मगर एक राजनीतिक दल में मुसलमान का होना "मुस्लिम नेता" होना नही है,वहां वो एक दल के लिए मुस्लिमों के लिए नेता नही है,वहां वो बस एक ऐसा नेता है जो किसी भी राजनैतिक दल में एक "मुस्लिम" मात्र है । जो किसी भी राजनैतिक दल में मुस्लिम समाज से आया हुआ है सिर्फ "राजनीतिक" अहमियत के लिए है।

इसका सीधा सा मतलब महज़ ये है कि राजनीतिक दल, "सेक्युलर दल" किसी भी ऐसे नेता को अपनी पार्टी में नही लेतें है जो मुस्लिम समाज के "पिछड़ेपन" की बात करें,उसकी समस्या की बात करें और सत्ता में मौजूद पार्टी से न तो सवाल कर सकें और न मांग कर सकें बस वो वहां पर "मुस्लिम प्रतिनिधित्व" के नाम पर आया है ।

इसी काम को बखूबी लगभग हर एक नेता निभाता भी है,वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी मुस्लिम नेताओं के बारे में कहते है कि "राजनैतिक दलों को सिर्फ ऐसे मुस्लिम नेता चाहिए जो बस दो बार मुंह खोलें एक पान खाने के लिए दूसरा पान थूकने के लिए" और ये बात हूबहू बिल्कुल सही सिद्ध तब हो जाती है,जब बड़े बड़े नेताओं के होते हुए भी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा हुआ है।

सवाल सिर्फ सपा के आज़म खान का नही है,कांग्रेस के ग़ुलाम नबी आजाद का नही है या फिर राजद के मरहूम तस्लीमुद्दीन साहब का नही है,सवाल सिर्फ बात का है कि संवैधानिक धारणाओं के तहत,प्रतिनिधित्व के तहत क्यों मुस्लिम समाज आज भी राजनैतिक तौर पर पिछड़ा हुआ है,और इतना पिछड़ा हुआ है कि आज भी उनको अपनी ज़रूरतें या स्थिति बिल्कुल भी सुधरती हुई नजर नही आ रही है ,तो सवाल लाज़मी भी हो जाता है कि फिर सत्तर सालों से अब तक "मुस्लिम" नेता राजनेतिक दलों में कर क्या रहें है?

क्या सिर्फ अपने नबंर नही बढ़ा रहें है? क्या सिर्फ अपना रुबाब नही बढ़ा रहें है? और क्या सिर्फ "मुस्लिम" नाम की वजह से पूरे मुस्लिम समाज को सांप्रदायिक नज़रों में नही ला रहें है वो भी सिर्फ इस नाम पर की राजनेतिक दल मुस्लिमों के लिए बहुत कुछ करतें है,लेकिन हक़ीक़त ये है कि "मुशायरें" ,"हज हॉउस,"कब्रिस्तान" की दीवार से से लेकर "लाल बत्ती" या इससे ज़्यादा विधानसभा या चेयरमैन बन जाने भर का "टिकट" ही मिला है।इसके भी बाद एक और "मुस्लिम नेता" ही बना है।

कहा है शिक्षा से लेकर प्रशानिक,और सरकारी नोकरियाँ और समाजिक तौर पर हर एक क्षेत्र में भागीदारी क्यों नही? सवाल बहुत बुनियादी है,और हर एक से है ।


असद शेख

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