विलुप्त होता "सद्भाव"

आप हाल फिलहाल में आने वाली खबरों पर ज़रा गौर करें,यानी उसका पैटर्न देखें कि वो क्या है,यानी उदाहरण के तौर पर "हिन्दू शरणार्थियों को मुस्लिम युवकों ने बचाया","मुस्लिमों की मदद को आगे आएं हिन्दू" या वगैराह वगैराह ऐसी न जाने कितनी ही खबरों को सोशल मीडिया से लेकर से आम बातों में भी लाया जाता है,और बहुत गौर फिक्र करते हुए लाया जाता है,लेकिन ऐसा क्यों है?

क्या वजह है कि एक वक्त में आम खबरें आज ज़ख्मों पर मलहम जैसा काम कर रही है? पता है ऐसा क्यों क्योंकि हालात ऐसे हो गए है,हालात ये हो गये है हर एक तबका दूसरे के खून का प्यासा हुआ जा रहा है,ऐसा प्यासा की किसी बेगुनाह की मौत "विकेट गिरना" नज़र आने लगी है,क्या ये हालात बेहतर है ? क्या ये स्थित अच्छी है ? क्या ये भारत के मिजाज़ के लिये अच्छा है?

सवाल बहुत पेचीदा है कि क्यों ये स्थिति ही ये आ गयी है ?अब हो सकता है कि एक तबका इस मसले को "आरएसएस" से जोड़ दें,दुसरा तबका इस मसले को "बढ़ती आबादी" से जोड़ दें,लेकिन असल मायनों में दिक्कत ये तबके ही है,जो राजनीति,लोकतंत्र, वोट और अधिकारों का ढोल सिर्फ और सिर्फ चुनावों के वक़्त बजाते है,और फिर चुनाव होते ही भाग खड़े होते है,लेकिन तब एक मजबूत दीवार बीच मे खाई पाट देती है,और एक दूसरे तबके से लड़ने वाले हम "भारतीय" बस ढोल पीटते रह जाते है,बदलें में आम भारतीयों को क्या मिलता है बोरे भरकर नफ़रतें,लेकिन ये बात शायद समझी नही जा रही है की "जनता" का इस्तेमाल हो रहा है,राजनीति के लिए "धर्म" के लिए और वोट के लिये।
(तस्वीर कश्मीर की है जहाँ कश्मीरी लोग घायल अमरनाथ यात्रियों की सहायता कर रहें है  )

अब विचार करने की बात ये है कि जिस समाज मे जनता ही का इस्तेमाल हो वहां क्या किया है सकता है? यहां तो हालात ये हो गए है की साम्प्रदायिक सद्भाव,सेक्युलिरिज़्म और "साझी सभ्यताओं" जैसे शब्दों को "संरक्षित" करके रखने के हालात हो गए है,एक एक बेहतर घटना,समाज को बेहतर घटना समाज को "ऑक्सीजन" देती है जिससे कि सांस तो लिया जा ही सकें,वरना अब तो हालात ये हो गए है कि सोशल मीडिया से लेकर समाज तक,राजनीति तक और स्कूलो और कॉलेजेस तक "नफरत" आम सी हो गयी है।

इस सबके पीछे वजह ये हैं कि "साम्प्रदयिक सदभाव" धीरे  धीरे और बहुत ध्यान रखते हुए "विलुप्त"(खत्म) हो रहा है,और अगर ऐसा ही रहा तो बहुत ही जल्द साम्प्रदायिक सद्भाव बनाने वालों लोगों को शाल और तोहफे देकर भरोसा जगाया जाएगा और उनका संरक्षण किया जाएगा ,कि बड़ी मेहरबानी आपकी कि आपने ऐसा किया,अफ़सोस और दुःख की ये स्थित आयी लेकीन ये जो हालात है ये बस तभी बेहतर हो सकतें है जब ये खबरें बढ़ चढ़कर सामने आएं और ईमानदारी से कम पर काम हो,

तब तक हर एक को कोशिशें जारी रखनी ही पड़ेगी,क्योंकि ये ज़िम्मेदारी हर एक की है.

असद शेख

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