तस्लीमा की समस्या जड़ में कोंन?

तसलीमा नसरीन जिनके नाम में विवादित,निर्वासित और चर्चित जेसे शब्द बहूत आसानी से जुड़े रहते है,इसकी वजह कई हो सकती है लेकिन अपने लिखे नये लेख में वो कुछ और हालत बयान कर रही है,क्यों कहा नही जा सकता लेकिन हां उनके उठायें गये सवाल अहम है,क्यूंकि इस बार खुद अपने बारे में बयान कर रही है,लिख रही है और बोल रही है,विवाद अपनी जगह,समस्याएं अपनी जगह लेकिन ये वजह जाननी भी बहुत ज़रूरी है की तसलीमा नसरीन की समस्या की ज़िम्मेदारी किसकी है?
इस समस्या के पेड़ की जड़ कोन है?असल में तसलीमा नसरीन के इस लेख से मुझे अपनी कुछ महीने पहले लिखी कहानी "आज़ादी का ख्वाब" याद आ जाती है,क्यूंकि उसकी मुख्य नायिका भी कुछ ऐसा ही बयां करती है जो तसलीमा नसरीन कर रहीं है , फिलहाल तसलीमा नसरीन के लिखें लेखों पर बात,
तसलीमा नसरीन बहुत ही बेबाक लिखने वाली लेखिका है,और शायद यहीं उनके चर्चा में बने रहने की वजह है,बारहाल ये लेखकीय खूबी है,बात उनके हंस के फरवरी माह में छपे लेख की जिसमे तसलीमा नसरीन सुकुन,आराम और अपनी गलती जेसे बहुत से आम शब्दों का प्रयोग कर रहि है, अपने आप को "बिना घर की महिला" कह रही है क्यूंकि उन्हें कोई घर देता नही है,सवाल अगर ये है तो सवाल ये भी है की इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है?
ज़िम्मेदारी बेशक संकुचित सोच के पुरुषों की भी है लेकिन तसलीमा नसरीन की भी है,जो अपने ननिहाल के मर्दों,माहोल और हालत से तमाम इस्लाम मजहब को कोसने में कसर नही छोड़ती है,क्या ये बेहतर बात है?और वो खुद ही लेख में लिखती है की "मेने कभी पिता,भाई,भाई बंधू का सहारा नही लिया तो बताइए बिना पति के परिवार बन सकता है?
अब इससे पहले वो टोके की क्या पति का पत्नी के बिना और पत्नी का पति के बिना "घर" बन भी केसे सकता है? और दूसरी बात तसलीमा वो खुद ही है जो अपना घर,परिवार,समाज और देश तक तो छोड़ आई और धर्म की उनके सामने बात ही क्या तो फिर कोंन तसलीमा नसरीन पर भरोसा करें? घर में जगह दे? हां वो अलग बात है उनका इस्तेमाल करें,
उन्हें मुस्लिमों के खिलाफ हथियार जेसा इस्तेमाल करें,उनका नाम चुनावी रैलियों में पुकारें और पूरी तरह इस्तेमाल करें गलत या  सही इस पे टिप्पणी नही लेकिन हां करें,और अब फिर वहीं बात की इसकी ज़िम्मेदारी किसकी? बेशक ज़िम्मेदारी तसलीमा नसरीन की क्यूंकि वो खुद बेठें बिठाएं अपने से  एक पूर्णत विरोधी समाज के लिए मौका बनकर रह गयी वो भी अपनी गलती से,और इसी को वो आगें लिखती भी है की "चुनाव अभियान के दौरान मुझे याद किया जा सकता है" तो उन्हें इस बात का इल्म भी होना चाहिए की क्यों याद किया जा सकता है?
फिर उसके बाद एक और बात तसलीमा नसरीन लिखती है की "मुझे अपने घर की ज़रूरत है सिर्फ मैं ही नही वर्जिनिया वुल्फ ने भी कहा था की उन्हें एक घर की ज़रूरत है जहा वो लिख सकें पढ़ सकें,सोच सकें और बोल सकें" तो बात अब ये की ये वही तसलीमा नसरीन है जो मर्दों को संकुचित सोच वाला कहती है और अगली ही बात में परिवार की बात करती है तो बताइए की बिना पति के या बिना पत्नी के कोई परिवार बन सकता है?समाज बन सकता है? दुनियावी निजाम बन सकता है?एक हजारों साल से चला आ रहा सिस्टम चल सकता है? परिवार बन सकता है? तो फिर कोनसा परिवार बनाना चाहती है या बना सकती है?
पता नही मालूम नही लेकिन शायद तसलीमा नसरीन इन बातों को बेहतर जानती है की परिवार केसे बनता है ,केसे बनाया जाता है और ये ज़ाहिर बात है की जब परिवार होगा शोहर होगा और बीवी होगी तो बेशक अपना एक घर और एक कमरा भी होगा लेकिन तसलीमा नसरीन इस चीज़ से शायद ही मतलब रखें और जानने की भी कोशिश करें क्यूंकि वो ठहरी "मॉडर्न वोमेन" है न...
इसके आगे अंतिम तौर पर तसलीमा नसरीन अपने लेख में लिखती है की "लोग ये न भूल जाएँ की मेने असहनीय दुःख और दुर्भावनाओ से भरा जीवन काटा यहा" लेकिन फिर से बात वहीं की जो बात झटक कर तसलीमा नसरीन छोड़ कर या थोप कर जा रही है उसकी जिमेदारी किसकी है? बंगलादेश की? तसलीमा नसरीन के वालिद साहब की? वालिदा की? उनके ननिहाल की सोच की ? उनके घर के पास के माहोल की या तसलीमा नसरीन की खुद की जो अपनी लेख संग्रह की किताब के एक लेख में लिखती है की जो सच में अज्ञानता,अध्ययन से दुरी और नादानी भरी बात करती है और कहती है और बताना चाहती है इस्लाम धर्म की "लड़कियों को कुरान की तालीम दी जाती थी ताकि पति की हिफाजत के लिए दवा दारु पढ़ सकें" जो शायद अपनी नासमझी जेसी बातों को मजहब इस्लाम की बुनियादी चीज़ का नाम देती है.
मैं तय करने की बात नही कर रहा बस पूछ रहा हूँ की इस्लाम उसकी अवधारणा,तरबियत,कानून और कायदे को समझे बिना या समझ कर भी अनजाने बनते हुए इस्लाम मजहब पर सवाल उठाती है तो क्या ये उचित है? और अगर ऐसा है भी तो क्या हम बिना जाने तसलीमा नसरीन पर सवाल उठायें उनके चरित्र पर सवाल उठायें? नही मजहब ए इस्लाम की अवधारणा इस बात की जरा भी इजाजत नही देती है,और फिर बात लोटकर यही की जो वो बात आखिर में लिखती है की "मेने एक स्वस्थ,सुंदर समाज का सपना देखा था इसके अलावा क्या सपना था मेरा" लेकिन तसलीमा नसरीन भूल गयी की उन्हें स्वस्थ और सुंदर समाज पैदा होने के साथ ही मिल गया था ।
बेशक बात और बहस इस बात पर हो सकती है की गलत क्या है सही क्या है,लेकिन इस्लाम धर्म स्वस्थ यानी सभी को बराबरी,मर्द और औरत को, सुंदर यानी बेहतर व्यवस्था खाने,पीने,रहेने,बोलने,सेक्स,जीवन यापन से लेकर बोलने,तर्क करने और सवाल करने तक की इजाजत देता है पूरा हक देता है तो फिर तसलीमा नसरीन को और क्या चाहिए था?
अब मॉडर्न होने का ढोल पीटने वाले इस बात का फजीता करेंगे की तसलीमा नसरीन के घर का माहोल ऐसा और वेसा था तो कृपा करके कोई इन दोनों से ही पूछें की फिर शोर क्यों? मजहब पर सवाल क्यों? गलत तो घर था न? या तसलीमा नसरीन जल्दी कर गयी समझने में की गलती मजहब की नही घर की है और अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल और उम्र बिना समझें जानी वाली बात के लिए ही गुज़ार गयी चलिए ये फैसला आप कर लीजिये मैं बस इतना ही कहूँगा की जब मेरा पेट भरा है तो दुसरे से खाना तो नही मांगूंगा,बिलकुल भी नही मांगूंगा बाकी आप समझिये.
सब कुछ हाथ में होने के बावजूद भी जब तसलीमा नसरीन सब कुछ सुधार कर अपने परिवार को बदल सकती थी एक नयी मिसाल बन सकती थी,और गलत और सही तर्क देने की पूरी पीढ़ी तैयार कर सकती थी,आखिर तस्लीमा नसरीन एक बेहतरीन लेखिका है और डॉक्टर भी है तो अब आगे क्या बात हो? और तस्लीमा नसरीन इस्लाम की सही अवधारणा पेश कर सकती थी वहा वो क्या कर गयी और अब पछतावे में जी रही है और लेख लिख रही है, ये बात सच में दुखद है बाकी बात तो बाद में लेकिन फिलहाल हम तसलीमा नसरीन जी के साथ है क्यूंकि वो एक महान लेखिका है...

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