ताक़ि सड़क शांत न हो...
धरना,भूख हड़ताल अनशन या किसी और मांग को लेकर प्रोटेस्ट करना,आंदोलन करना इन सारी गतिविधियों को देख कर या ज़्यादा व्यस्त लोगों को ये सब सुनकर केसा लगता है? सोचिये थोड़ा ज़ोर डालिये नही डाल पाएं कहिये न आता होगा "अरें ये तो रोज़ का है" "काम धंधा नही है" या "छोड़ों इन्हें तो कोई काम नही" यही आता है न, क्यों है न...
जंतर मंतर से गुज़रियें कभी चारों तरफ देख कर सोचेंगे अरें क्या है लोग, लेकिन क्या है ये लोग का जवाब कभी मिला है आपको? उसका जवाब है कि उम्मीद है वो लोग,आशा है वो लोग लोकतंत्र का हिस्सा है वो लोग , हमारे लिए आम सी बात होती है किसी का धरना प्रदर्शन लेकिन ये धरना कितनी काबिलियत रखता है इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते है कि इसी धरने ने एक आम से वक़ील को 'महात्मा' बना दिया था ,बापू बना दिया था।
आपकों शायद धरने से बापू बने बात अजीब लगी होगी लेकिन इसी धरने ने एक "आयरन लेडी" की सरकार उखाड़ फेंका था, "दुर्गा" कही जाने वाली इंदिरा की ज़मानत ज़ब्त करा दी थी ,ये वही आम सा धरना था जिसने इतिहास बदला था और लोगों को एक नई सुबह दी थी अंजाम जो हुआ हो लेकिन ये लोकतंत्र की जीत थी, अफ्स्पा के खिलाफ 13 साल भूखी बैठी इरोम शर्मिला याद है? जी हा उन्हें हारा हुआ कहने वालों से कहना चाहता हूँ की उनकी हर जीत का अंदाज़ा उनके राज्य जाकर लगाएं.
अब वो इतिहास हो चला अब बात करिये 2011 की ठंड की जहा एक 73 साल का रिटायर फौजी धरना कर रहा था, बहुत मज़ाक बनी लेकिन परिणाम मिला एक और ऐतिहासिक सरकार के परिवर्तन से,वो भी पूर्ण बहुमत वाला अब इससे पहले आप ख़ुद कुछ अंदाज़ा लगाएं मै बता दूं मै किसी का पक्ष रखने के लिये गड़े मुर्दे नही उखाड़ रहा हूं आपको उन भूखे,सड़कों पर बैठें और आम से नज़र आने वाले लोगों के मज़ाक से बनाने से पहले सोचने की बात कह रहा हूँ.
अब बारी आती है 2016 के अंत कि 30 साल बाद 2014 की पूर्ण बहुमत वाली सरकार के ढाई साल बाद की तो उसका हल आपको फेसबुक और न्यूज़ रूम की गलां फाड़ चींखों में नही मिलेगा उसका हल ढूँढिये संवैधानिक तरीक़े से सड़क पर उतरिये और कोई रोकता है तो उसका गला न्ययालय से दबोच लीजिये यक़ीन करिये आप जीत जायेंगे, आप भूख हड़ताल करिये,आप धरने करिये और डट कर हर उस विचारधारा का सामना करिये जो आपके खिलाफ है किसी एक भी तबक़े के ख़िलाफ़ है,यक़ीन मानिये आप जीत जायेंगे देर से ही सही जवाब मिलेगा हर सवाल का क्योंकि ये ज़िम्मेदारी आपकी है आउट हर नागरिक की है।
अंत में एक और बात अगर आप संविधान के साथ नही खड़े है और उसके दिए हक़ को भी नही मांगते है तो आप संविधान के ख़िलाफ़ खड़े है और सड़क को ख़ाली न रहने दे हर बुराई के खिलाफ खड़े रहे क्योंकि लोहिया कहते थे, 'अगर सड़क शांत हो जायेगी, तो ये संसद आवारा हो जायेगी"...
असद शैख़
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